एक बूंद : अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

एक बूंद : अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'


प्रस्तावना - 'एक बूंद' कविता अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' द्वारा रचित एक प्रसिद्ध कविता है। प्रस्तुत कविता में बूंद के माध्यम से घर छोड़ने वाले व्यक्ति की मनोदशा का वर्णन किया है। घर से निकलने वाला व्यक्ति परेशान रहता है उसे पता नहीं होता उसका क्या होगा? उसकी किस्मत एवं कर्म उसे कहाँ ले जायेगी। सिंह जी ने बूंद का मानवीकरण बड़ा ही प्रभावी ढंग से किया है। कवि ने यथार्थ का वर्णन किया है तथा मनुष्य में साहस का संचार किया है। यथार्थ स्थिति से अवगत कराया है कि प्रत्येक मनुष्य को घर छोड़ना ही पड़ता है। 

उद्देश्य :-

(1) बालकों में साहस और वीरता भरना साथ ही उन्हे प्रेरित करना। 

(2) दुतता एवं शुद्ध उच्चारण कर सकना। 

(3) अर्थ समझ कर लिख सकना। 

(4) भविष्य में आने वाली हर विपत्ति का सामना करने के लिए प्रेरित करना। 

(5) काव्य के प्रति रूचि जगाना। 

एक बूंद 

अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध

ज्यों निकलकर बादलों की गोद से,

                    थी अभी एक बूंद कुछ आगे बढ़ी।

सोचने फिर-फिर यही जी में लगी,

                            आह। क्यो घर छोड़कर मैं यों कढ़ी।। 1।।

 

दैव मेरे भग्य में है क्या बदा,

               मैं बनूंगी या मिलूँगी धूल में।

या जलूंगी गिर अंगारे पर किसी,

                           चू पड्गी या कमल के फूल में।। ।।


वह गयी उस काल एक ऐसी हवा,

                    वह समुन्दर ओर आयी अनमनी।

एक सुन्दर सीप का मुँह या खुला,

                           वह उसी में जा पड़ी मोती बनी।। ।।

 

लोग यों ही हैं झिझकते सोचते,

                        जबकि उनको छोड़ना पड़ता है घर।

किन्तु घर का छोड़ना अक्सर उन्हें,

                            बूंद लौं कुछ और ही देता है कर।।4।।

 

शब्दार्थ :- कढ़ी = निकलीबदा = लिखाअनमनी = उदासलौ = समान। 


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