कदम्ब का पेड़ : सुभद्रा कुमारी चौहान
प्रस्तावना- 'कदम्ब का पेड़' सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता है। प्रस्तुत कविता में प्रकृति प्रेम को दर्शाया गया है। इस कविता में एक बच्चा अपनी माँ से कदम्ब के पेड़ के प्रति अपनी आत्मियता को प्रकट कर रहा है। वह अपनी माँ से कहता है कि यदि तुम मुझे बाँसुरी खरीद देती तो मैं कदम्ब की डाल पर चढ़ उसे बजाता। तुम मेरी बंसी को सुनती तो खुश हो आती। तुम सब काम छोड़कर मेरे पास आती तो मैं और ऊपर चढ़ जाता। तुम गुस्सा होकर मुझे डाँटती और जब नीचे आ जाता तो 'मुन्ना राजा' कहकर प्यार करती। माँ और बेटे के प्रेम को भी दर्शाया गया है।
उद्देश्य -
(क) माँ और बेटे के वात्सल्य सम्बन्ध को समझ सकना।
(ख) बालसुलभ चंचलता को समझते हुए प्राकृतिक वस्तुओं पेड़ पौधे से प्रेम एवं इनका संरक्षण कर सकना।
(ग) द्रुतता एवं शुद्ध उच्चारण के साथ पढ़ सकना।
(घ) कठिन शब्दार्थों को समझ सकना एवं समझकर लिख सकना।
कदम्ब का पेड़
सुभद्रा कुमारी चौहान
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे ।
ले देती यदि मुझे बाँसुरी तुम दो पैसे वाली,
किसी तरह नीचे हो जाती यह कदम्ब की डाली।
तुम्हें नहीं कुछ कहता, पर मैं चुपके-चुपके आता,
उस नीची डाली से अम्मां, ऊँचे पर चढ़ जाता।
वहीं बैठे फिर बड़े मजे से मैं बाँसुड़ी बजाता,
अम्मा-अम्मा कह बंसी के स्वर में तुम्हें बुलाता।
सुन मेरी बंसी को माँ तुम इतनी खुश हो जाती।
मुझे देखने काम छोड़कर तुम बाहर तक आती।
तुमको बाहर आता देख बाँसुड़ी रख मैं चुप हो जाता।
पत्तों
में छिपकर धीरे से फिर बाँसुरी बजाता।
पर जब मैं न उतरता, हँसकर कहती, "मुन्ना राजा"।
नीचे उतरो मेरे भैया। तुम्हें मिठाई दूँगी,
नए खिलौने, माखन, मिसरी, दूध मलाई दूँगी।
मैं हँसकर सबसे ऊपर की टहनी पर चढ़ जाता,
एक बार माँ कह पत्तों में वहीं कहीं छिप जाता।
बहुत बुलाने पर भी जब मै न उतरकर आता,
तब माँ, हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता।
ईश्वर से कुछ विनती करतीं, बैठी आँखे नीचे
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे से आ जाता,
तुम घबराकर आँख खोलती फिर भी खुश हो जाती
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पाती।
इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे
माँ कदम्ब का पेड़ अगर यह होता यमुना-तीरे।
शब्दार्थ :- यमुना = नदी का नाम, तीरे = किनारे, कन्हैया = कृष्ण, विकल = बेचैन, पासारकर = फैलाकर।
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