पुष्प की अभिलाषा : माखन लाल चतुर्वेदी

(भाग - एक)

पुष्प की अभिलाषा : माखन लाल चतुर्वेदी


प्रस्तावना :- 'पुष्प की अभिलाषा' माखन लाल चतुर्वेदी जी की प्रसिद्ध रचना है। प्रस्तुत कविता देश प्रेम की भावना से ओत प्रोत है। प्रस्तुत कविता में पुष्प के माध्यम से वीर एवं त्यागी पुरुष की देश भक्ति का चित्रण किया है। प्रस्तुत कविता में देश प्रेमी या देशभक्त व्यक्ति के त्याग और बलिदान का वर्णन किया गया है। पुष्प की यही इच्छा है कि उसे उस पथ में फेंक दिया जाय जिस पथ से होकर अनेक वीर जाएँ। प्रस्तुत कविता शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि है। 

उद्देश्य :-

(i) प्रस्तुत पाठ का मुख्य उद्देश्य छात्रों में देशभक्ति की भावना को विकसित करना। 

(ii) श्रवण पठन बोध क्षमता का विकास करना।

(iii) सौन्दर्य बोध करना।

(iv) काव्य के प्रति रुचि जागृत करना।

(v) कविता के संदर्भ से बच्चों को अवगत कराना - शहिदों के प्रति प्रेम की भावना विकसित करना।

(vi) बच्चों के अर्थ गहण करने की क्षमता को विकसित करना। 

 

भाग -- एक (पद्य) पुष्प की अभिलाषा

माखन लाल चतुर्वेदी 

चाह नहीं, मैं सुरबाला के,

गहनों में गूंथा जाऊँ

चाह नहीं, प्रेमी - माला में

बिंध प्यारी को ललचाऊँ 

 

चाह नहीं सम्राटों के शव

पर, हे हरि, डाला जाऊँ

चाह नहीं, देवों के सिर

पर चढू, भाग्य पर इठलाऊँ।

मुझे तोड़ लेना, वनमाली 

 

उस पथ पर देना तुम फेंक

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,

जिस पथ जाएँ वीर अनेक। 


 शब्दार्थ : सुरबाला = सुंदरी। गूंथा = गूंथना, पिरोना । चाह == इच्छा। शव = लाश (मृतक)। इठलाऊँ = इठलाना, प्रसन्न होना। अनेक = बहुत सारा। 



Post Navi

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ