अनमोल वचन : रहीम / कबीर दास
प्रस्तावना -
अनमोल वचन में रहीम
एवं कबीर के कुछ दोहों को संग्रहित किया गया है। अनमोल वचन में संग्रहित दोहे
नैतिकता पर आधारित हैं। प्रस्तुत दोहों में गुरु की महानता प्रेम के महत्व,
समय के महत्व, संगति के महत्व जैसे आदर्श विषय का वर्णन किया गया है। इसके
अलावा धर्म निरपेक्षता एवं सद्भाव जैसे गुणों का समावेश किया है। प्रस्तुत दोहे आम
इन्सान की जिन्दगी को प्रेरित करने में सक्षम है। ये दोहे नैतिकता को ध्यान में रख कर आदर्श समाज की प्रतिष्ठा करने के उद्देश्य से
लिखे गये हैं।
उद्देश्य :-
(1)
छात्रों में धर्मनिरपेक्षता, नैतिकता तथा सद्भाव जैसे गुणों का विकास करना।
(2) श्रवण-पठन बोध क्षमता का विकास करना।
(3) लयबद्ध तरीके से पठन क्षमता का विकास करना।
(4) काव्य के प्रति रुचि उत्पन्न करना।
(5) छात्रों को कठिन
शब्दों से परिचित कराना एवं उनके अर्थ को समझाना और अभ्यास द्वारा सिखाना।
अनमोल वचन
रहीम / कबीर दास
गुरु-गोविन्द दोनों
खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने,
गोविन्द दियो बताय।।
तिनका कबहूँ न
निन्दिये, जो पायन तर होय।
कबहुँक उड़ि आँखिन
परै, पीर धनेरी होय।।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा अपना,
मुझ सा बुरा न कोय।।
रात गँवाई सोय कर,
दिवस गँवाया खाय।
हीरा जनम अमोल था,
कौड़ी बदले जाय।।
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग
मुआ, पण्डित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का
पदै सो पण्डित होय।।
साँच बराबर तब नहीं,
झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदय सांच है,
ताके हिरदय आप।।
ज्ञानी, ध्यानी, संयमी, दाता सूर अनेक।
जपिया, तपिया बहुत हैं, सीलवंत कोऊ एक।।
जो रहीम उत्तम
प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत
नहीं, लपटे रहत भुजंग।।
जो तोके काँटा बुवै
ताहि बोय तु फूल।
टोको फूल को फूल हैं, वाको हैं तिरसूल।।
बड़ा हुआ तो क्या
हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं,
फल लागै अति दूर।।
ऐसी बानी बोलिये मन
का आपा खोय।
औरन को शीतल करै,
आपहुँ शीतल होय।।
तरुवर फल नहीं खात
है, सरवर पियत न नीर।
परमारथ के कारनें,
संतन धरा शरीर।।
बोली एक अमोल है,
जो कोई बोले जानि।
हिये तराजू तौल के,
तब मुख बाहर आनि।।
विद्या धन उद्यम
बिना, कहो जु पावै कौन।
बिना डुलाये ना मिले,
ज्यों पंखा की पौन।।
जो पहले कीजे जतन,
सो पीछे फलदाय।
आग लगै खोदे कुआँ,
कैसे आग बुझाय।।
शब्दार्थ : बलिहारी = श्रद्धा, भक्ति । मिलिया = मिलना। अमोल = अमूल्य। सीलवंत = कोमल स्वभाव वाला। भुजंग = सर्प। पंथी = राहगीर। आपा = दर्प, घमण्ड। हिये = हृदय। तरुवर = वृक्ष या पेड़। उद्यम = पयत्न। पौन = पवन, हवा।
0 टिप्पणियाँ
Please do not enter any spam link in the comment box