सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’


सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म सरस्वती वंदना अर्थात पंचमी की 21  फरवरी, सन  1896   ई.  में ‘ गढ़ कोला’  नामक ग्राम में हुआ था|  गढ़ कोला उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का एक छोटा सा गांव है|  सूर्य के व्रत अनुष्ठान से मां ने पुत्र को पाया था,  तो बड़े प्यार से नाम रखा था सूर्य कुमार;  जिसे बाद में स्वयं निराला ने सूर्यकांत कर दिया था|


    अभी सुशील कुमार कोला की प्राकृतिक सुषमा को भरपूर आंखों से देखने के  योग्य भी नहीं हुआ था कि 3 वर्षों की  अवस्था मैं मान गई|  मां की  गोद ही नहीं छूटी, गढ़ कोला की मातृभूमि भी छूट गई|  पिता बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल राज्य में राज्य कर्मचारी थे, सो बालक सूर्य कुमार पिता के साथ महिषादल पहुंच गए|  वहां सामंत भाई वातावरण के साथ-साथ पिता का तानाशाह व्यवहार भी झेलना पड़ा|  पिता के कठोर अनुशासन ने बालक को जिद्दी और उदंड बना दिया| बंगाल राज्य परिवार के संपर्क में रहकर बांग्ला भाषा से इनका स्वभाविक लगा हुआ|  इनकी प्रारंभिक शिक्षा भी बंगाल स्कूल में हुई|  बाद में ऊंची कक्षाओं में इन्होंने हिंदी,  संस्कृत और अंग्रेजी भी सीखी| पर निराला बड़े मनमौजी स्वभाव के थे|  पर बचपन से ही वे बड़े महत्वकांक्षी भी थे|  जब उन्होंने सुना कि विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर केवल नवी कक्षा तक पढ़े थे,  तब उन्होंने भी निश्चय किया कि वे भी इससे ज्यादा नहीं पढ़ेंगे क्योंकि उन्हें भी बहुत बड़ा लेखक बनना है| आगे पढ़ना नहीं था सो उनका विवाह नवी कक्षा में पढ़ते समय 15 वर्ष की आयु में सन वन  1911 ई।  में  मनोहरा देवी से कर दिया गया|  किंतु जीवन संगिनी का साथ भी इन्हें अधिक समय तक ना मिल सका|  3 वर्ष की अवस्था में मां छोड़ कर चली गई और 23 वर्ष की अवस्था में अर्धांगिनी स्मृति के रूप में छोड़ गए 3 साल के पुत्र और 1 साल की पुत्री का उत्तरदायित्व|  यहीं से निराला जी के जीवन संघर्षों का सिलसिला आरंभ हो गया|  पिता इससे पूर्व भी दिवंगत हो चुके थे|  महिषादल राज में ही इन्हें नौकरी मिल गई|  किंतु मनमौजी निराला सामंत शाही अनुशासन कैसे जेल पाते? अतः नौकरी छोड़ घर बैठे और साहित्य सर्जन को जीवन का आधार बनाया|  बस यही से प्रारंभ होती है,  उनके साहित्यिक जीवन की कहानी|  पहले लेख,  आलोचना,  टीका टिप्पणी और उन वादों पर लेखनी चलाई|  लेकिन संघर्ष का दौर यहां भी चलता रहा|  बड़ा लेखक बनने का हौसला था,  तो छुट्टी पत्रिका में अपनी रचना कैसे भेजते हैं अपनी रचनाएं भी उस समय की लोकप्रिय पत्रिका 'सरस्वती' में भेजते थे|  कविता,  लेख वापस आ जाते,  किंतु महान कवि की पर अब तक ना होती? फिर एक समय ऐसा भी आया जब सरस्वती से लौटी 'जूही की कली'  रचना 'माधुरी'  प्रथम अंक में छपी,  जिसने साहित्य जगत में तहलका मचा दिया|  फिर तो इनकी कविताओं की मांग  सरस्वती में भी होने लगी| बाद में उनके अनेक काव्य संग्रह प्रकाशित हुए जिनमें से 'परिमल' (1929), गीतिका (1936),  अनामिका (1937), तुलसीदास (1938), कुकुरमुत्ता (1942),   अणिमा (1943),  बेला (1943),  नए पत्ते (1946),  अपरा (1948),  अर्चना (1950), आराधना (1953), गीत गूंज (1954)  मुख्य है|


इनके विपुल साहित्य की रचना करने पर भी अपने जीवन काल में  निराला को न तो उचित सम्मान मिला और ना ही पैसा|  उन्हें सदैव पेट के ला ले रहे|  धना भाव के कारण ही उनकी विवाहित पुत्री सरोज मृत्यु का ग्रास  बनी|  धना भाव के कारण ही विराट व्यक्तित्व के स्वामी निराला जी धीरे धीरे से होते गए और 15 अक्टूबर 1961  ई॰  को इलाहाबाद (दारागंज) मे उन्होंने  अपना शरीर छोड़ दिया|


साहित्यिक सेवाएं


 निराला जी की कृतियों का निम्न रूप में वर्गीकरण कर सकते हैं-

  1.  अंतः प्रेरणा द्वारा रचित रचनाएं-  इसके अंतर्गत निराला जी की सभी कविता संग्रह तथा कुछ रेखा चित्र आते हैं|  निबंध भी  इसी वर्ग के अंतर्गत आते हैं|  निबंध उनके विशाल अध्ययन,  प्रखर प्रतिभा,  सुषमा कलात्मक अंतर्दृष्टि  एवं युग की सहज सतर्क धारणा के परिचायक हैं|

  2.  धन के हेतु रचित रचनाएं-  इसके अंतर्गत निराला के उपन्यास,  अनुवाद तथा उनकी कहानियां एवं जीवनिया आती हैं|

  3. निराला साहित्य का विद्यागत वर्गीकरण- निराला जी द्वारा वितरित संपूर्ण साहित्य ( ग्रंथ  67)  कि  तालिका इस प्रकार है-


कविता संग्रह (संख्या 13)
(1) अनामिका (भाग-1) सन 1923, (2) गीतिका सन 1936, (3) अनामिका (भाग-2) सन 1938, (4) परिमल सन 1940, (5) कुकुरमुत्ता सन 1942, (6) अणिमा सन 1943, (7) बेला सन 1946, (8) नये पत्ते सन 1946, (9) अर्चना सन 1950, (10) अपरा सन 1950, (11) आराधना सन 1953, (12) श्री रामचरितमानस का खड़ीबोली मे रूपांतर| (ये पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है| इनके अतिरिक्त एक कविता-संग्रह 'वर्षागीत' अभी तक अप्रकाशित है|)

खंडकाव्य (संख्या 1)
तुलसीदास (सन 1938)

उपन्यास (संख्या 8)
(1) अप्सरा, (2) अलका, (3) प्रभावती, (4) निरूपमा, (5) चोटी की पकड़, (6) काले कारनामे, (7) उच्छखल, (8) चमेली|

कहानी-संग्रह (संख्या 4)
(1) लिली, (2) सखी, (3) चतुर चमार, (4) सुकुल की बीबी|

रेखाचित्र (संख्या 1)
कुल्लीभाट और बिल्लेसुर बकरिहा|

निबंध-संग्रह (संख्या 4)
(1) प्रबंध पदम, (2) प्रबंध प्रतिमा, (3) चाबुक और (4) प्रबंध परिचय (अधिकतम निबंध आलोचनात्मक)|

आलोचनात्मक ग्रंथ (संख्या 1)
रवीन्द्र-कविता-कानन|

अनुवाद (संख्या 14)
दो प्रकार के अनुवाद-कथा साहित्य का अनुवाद (संख्या 11) तथा धार्मिक एवं आध्यात्मिक साहित्य का अनुवाद (संख्या 3)|
कथा साहित्य का अनुवाद
(1) आनंद मठ, (2) कपालकुंडला, (3) चन्द्रशेखरम, (4) दुर्गेशनंदिनी, (5) कृष्णकांत का बिल, (6) युगलांगुलि, (7) रजनी, (8) देवी चौधरानी, (9) राधारणी (10) विषवृछ, (11) राजासिंह तथा महाभारत का हिन्दी अनुवाद|

जीवनियाँ (संख्या 3)
(1) धुव, (2) भीष्म, (3) राणा|

नाटक (संख्या 3)
(1) समाज, (2) शकुंतला और (3) उषा-अनिरुद्ध (तीन नाटक अप्रकाशित)|

स्फुट रचनाएँ (4)
(1) हिंदी-बंगला शक्षक, (2) रस, अलंकार, (3) वात्स्यायन कामसूत्र, (4) तुलसीदास|
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