प्रगतिवाद (1936 - 1956)
- संगठित रूप में हिन्दी में प्रगतिवाद का आरंभ 'प्रगतिशील लेखक संघ' द्वारा 1936 ई० में लखनऊ में आयोजित उस अधिवेशन से होता है जिसकी अध्यक्षता प्रेमचंद ने की थी। इसमें उन्होंने कहा था, 'साहित्य का उद्देश्य दबे-कुचले हुए वर्ग की मुक्ति का होना चाहिए' ।
- 1935 ई० में इ० एम० फोस्टर ने प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन नामक एक संस्था की नींव पेरिस में रखी थी। इसी की देखा-देखी सज्जाद जहीर और मुल्क राज आनंद ने भारत में 1936 ई० में 'प्रगतिशील लेखक संघ' की स्थापना की।
- एक साहित्यिक आंदोलन के रूप में प्रगतिवाद का इतिहास मोटे तौर पर 1936 ई० से लेकर 1956 ई० तक का इतिहास है, जिसके प्रमुख कवि हैं- केदारनाथ अग्रवाल, नागार्जुन, राम विलास शर्मा, रांगेय राघव, शिव मंगल सिंह, 'सुमन', त्रिलोचन आदि।
- किन्तु व्यापक अर्थ में प्रगतिवाद न तो स्थिर मतवाद है और न ही स्थिर काव्य रूप बल्कि यह निरंतर विकासशील साहित्य धारा है।
- प्रगतिवाद के विकास में अपना योगदान देनेवाले परवर्ती कवियों में केदारनाथ सिंह, धूमिल, कुमार विमल, अरुण कमल, राजेश जोशी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
- प्रगतिवाद काव्य का मूलाधार मार्क्सवादी दर्शन है पर यह मार्क्सवादी का साहित्यिक रूपांतर मात्र नहीं है।
- प्रगतिवाद आंदोलन की पहचान जीवन और जगत के प्रति नये दृष्टिकोण में निहित है।
- यह नया दृष्टिकोण था : पुराने रूढ़िबद्ध जीवन-मूल्यों का त्याग; आध्यात्मिक व रहस्यात्मक अवधारणाओं के स्थान पर लोक आधारित अवधारणाओं को मानना; हर तरह के शोषण और दमन का विरोध; धर्म, लिंग, नस्ल, भाषा, क्षेत्र पर आधृत गैर-बराबरी का विरोध; स्वतंत्रता, समानता तथा लोकतंत्र में विश्वास; परिवर्तन व प्रगति में विश्वास; मेहनतकश लोगों के प्रति गहरी सहानुभूति; नारी पर हर तरह के अत्याचार का विरोध; साहित्य का लक्ष्य सामाजिकता में मानना आदि।
- प्रगतिवाद वैसी साहित्यिक प्रवृत्ति है जिसमें एक प्रकार की इतिहास चेतना, सामाजिक यथार्थ दृष्टि, वर्ग चेतन विचारधारा, प्रतिबद्धता या पक्षधरता, गहरी जीवनासक्ति, परिवर्तन के लिए सजगता और एक प्रकार की भविष्योन्मुखी दृष्टि मौजूद हो।
- प्रगतिवादी काव्य एक सीधी-सहज-तेज-प्रखर, कभी व्यंग्यपूर्ण आक्रामक काव्य-शैली का वाचक है।
- प्रगतिवादी साहित्य को सोद्देश्य मानता है और उसका उद्देश्य है 'जनता के लिए जनता का चित्रण' करना। दूसरे शब्दों में, वह कला 'कला के लिए' के सिद्धांत में यकीन नहीं करता बल्कि उसका यकीन तो 'कला जीवन के लिए' के फलसफे में है। मतलब कि प्रगतिवाद आनंदवादी मूल्यों के बजाय भौतिक उपयोगितावादी मूल्यों में विश्वास करता है।
- राजनीति में जो स्थान 'समाजवाद' का है वही स्थान साहित्य में 'प्रगतिवाद' का है।
प्रगतिवादी काव्य की विशेषताएं :-
(1) समाजवादी यथार्थवाद सामाजिक यथार्थ का चित्रण
(2) प्रकृति के प्रति लगाव
(3) नारी प्रेम
(4) राष्ट्रीयता
(5) सांप्रदायिकता का विरोध
(6) बोधगम्य भाषा (जनता की भाषा में जनता की बातें) व व्यंग्यात्मकता
(7) मुक्त छंद का प्रयोग (मुक्त छंद का आधार कजरी, लावनी, ठुमरी जैसे लोक गीत)
(8) मुक्तक काव्य रूप का प्रयोग।
छायावाद व प्रगतिवाद में अंतर:-
(i) छायावाद में कविता करने का उद्देश्य 'स्वान्तः सुखाय' है जबकि प्रगतिवाद में 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' है।
(ii) छायावाद में वैयक्तिक भावना प्रबल है जबकि प्रगतिवाद में सामाजिक भावना।
(iii) छायावाद में अतिशय कल्पनाशीलता है जबकि प्रगतिवाद में ठोस यथार्थ।
प्रसिद्ध पंक्तियाँ:-
"मार हथौड़ा कर-कर चोट
लाल हुए काले लोहे को
जैसा चाहे वैसा मोड़।"
"घुन खाए शहतीरों पर की बारहखड़ी विधाता बाँचे
फटी भीत है छत चूती है, आले पर विसतुइया नाचे
बरसाकर बेबस बच्चों पर मिनट-मिनट में पाँच तमाचे
दुखरन मास्टर गढ़ते रहते किसी तरह आदम के साँचे।" -
"बापू के भी ताऊ निकले
तीनों बंदर बापू के
सरल सूत्र उलझाऊ निकले
तीनों बंदर बापू के।" -
"काटो-काटो-काटो करवी
साइत और कुसाइत क्या है ?
मारो-मारो-मारो हंसिया
हिंसा और अहिंसा क्या है ?
जीवन से बढ़ हिंसा क्या है।'' -
"भारत माता ग्रामवासिनी।" -
"एक बीते के बराबर
यह हरा ठिंगना चना
बाँधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल
सजकर खड़ा है।" -
"हवा हूँ, हवा हूँ
मैं वसंती हवा हूँ।" -
"तेज धार का कर्मठ पानी
चट्टानों के ऊपर चढ़कर
मार रहा है घूंसे कसकर
तोड़ रहा है तट चट्टानी।" -
"मुझे जगत जीवन का प्रेमी
बना रहा है प्यार तुम्हारा।" -
"खेत हमारे, भूमि हमारी
सारा देश हमारा है
इसलिए तो हमको इसका
चप्पा-चप्पा प्यारा है।" -
''झुका यूनियन जैक
तिरंगा फिर ऊँचा लहराया
बांध तोड़ कर देखो कैसे
जन समूह लहराया।"
"जाने कब तक घाव भरेंगे इस घायल मानवता के
जाने कब तक सच्चे होंगे सपने सबकी समता के।" -
"मांझी न बजाओ वंशी मेरा मन डोलता
मेरा मन डोलता है जैसे जल डोलता
जल का जहाज जैसे हल-हल डोलता।" -
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