छायावाद युग (1918ई० - 1936 ई०)

छायावाद युग (1918ई० - 1936 ई०)


'छायावाद' के वास्तविक अर्थ को लेकर विद्वानों में मतभेद है।

छायावाद का अर्थ:-
  • मुकुटधर पाण्डेय ने 'रहस्यवाद', 
  • सुशील कुमार ने 'अस्पष्टता',
  • महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 'अन्योक्ति पद्धति'
  • रामचन्द्र शुक्ल ने 'शैली वैचित्र्य',
  • नंद दुलारे बाजपेयी ने 'आध्यात्मिक छाया का भान', 
  • डॉ० नगेन्द्र ने 'स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह' बताया है।
  • नामवर सिंह के शब्दों में, 'छायावाद शब्द का अर्थ चाहे जो हो परंतु व्यावहारिक दृष्टि से यह प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी की उन समस्त कविताओं का द्योतक है जो 1918 ई० से लेकर 1936ई० ('उच्छवास' से 'युगान्त') तक लिखी गई'।
सामान्य तौर पर किसी कविता के भावों की छाया यदि कहीं अन्यत्र जाकर पड़े तो वह 'छायावादी कविता' है। उदाहरण के तौर पर पंत की निम्न पंक्तियाँ देखी जा सकती है जो कहा तो जा रहा है छाँह के बारे में लेकिन अर्थ निकल रहा है नारी स्वातंत्र्य संबंधी :

कहो कौन तुम दमयंती सी इस तरु के नीचे सोयी, 
अहा तुम्हें भी त्याग गया क्या अलि नल-सा निष्ठुर कोई।

छायावाद युग की विशेषताएँ :-

(1) आत्माभिव्यक्ति अर्थात 'मैं' शैली/उत्तम पुरुष शैली
(2) आत्म-विस्तार/सामाजिक रूढ़ियों से मुक्ति
(3) प्रकृति प्रेम
(4) नारी प्रेम एवं उसकी मुक्ति का स्वर
(5) अज्ञात व असीम के प्रति जिज्ञासा (रहस्यवाद)
(6) सांस्कृतिक चेतना व सामाजिक चेतना/मानवतावाद
(7) स्वच्छंद कल्पना का नवोन्मेष
(8) विविध काव्य-रूपों का प्रयोग
(9) काव्य-भाषा-ललित-लवंगी कोमल कांत पदावली वाली भाषा
(10) मुक्त छंद का प्रयोग
(11) प्रकृति संबंधी बिम्बों की बहुलता
(12) भारतीय अलंकारों के साथ-साथ अंग्रेजी साहित्य के मानवीकरण व विशेषण विपर्यय अलंकारों का विपुल प्रयोग
  • छायावाद के कवि चातुष्टय -प्रसाद, निराला, पंत व महादेवी
  • छायावादी काव्य में प्रसाद ने यदि प्रकृति को मिलाया, निराला ने मुक्तक छन्द दिया, पंत ने शब्दों को खराद पर चढ़ाकर सुडौल और सरस बनाया, तो महादेवी ने उसमें प्राण डाले।
  • छायावाद को हिन्दी साहित्य में भक्ति काव्य के बाद स्थान दिया जाता है।
  • प्रसाद की प्रथम काव्य कृति -उर्वशी (1909ई०)
  • प्रसाद की प्रथम छायावादी काव्य कृति -झरना (1918 ई०)
  • प्रसाद की अंतिम काव्य कृति कामायनी (1937 ई०) -सर्वाधिक प्रसिद्ध काव्य कृति कामायनी के पात्र -मनु, श्रद्धा व इड़ा
  • पंत की प्रथम छायावादी काव्य कृति -उच्छवास (1918 ई०)
  • पंत की अंतिम छायावादी काव्य कृति -गुंजन (1932 ई०)
छायावाद युग में विविध काव्य रूपों का प्रयोग हुआ

मुक्तिक काव्य सर्वाधिक लोकप्रिय
  • गीति काव्य 'करुणालय' (प्रसाद),
  • 'पंचवटी प्रसंग' (निराला),
  • 'शिल्पी' व 'सौवर्ण रजत शिखर' (पंत)
  • प्रबंध काव्य 'कामायनी' व 'प्रेम पथिक' (प्रसाद),
  • 'ग्रंथि', 'लोकायतन' व 'सत्यकाम' (पंत),
  • 'तुलसीदास' (निराला)
  • लंबी कविता 'प्रलय की छाया' व 'शेर सिंह का शस्त्र समर्पण' (प्रसाद)
  • 'सरोज स्मृति' व 'राम की शक्ति पूजा' (निराला), 'परिवर्तन' (पंत)
प्रसिद्ध पंक्तियाँ:-

"मैंने मैं शैली अपनाई
देखा एक दुःखी निज भाई।" -निराला

"व्यर्थ हो गया जीवन
मैं रण में गया हार। ('वनवेला')" -निरालाा

"धन्ये, मैं पिता निरर्थक था
कुछ भी तेरे हित न कर सका।
जाना तो अर्थागमोपाय
पर रहा सदा संकुचित काय
लखकर अनर्थ आर्थिक पथ पर
हारता रहा मैं स्वार्थ समर।" ('सरोज स्मृति') -निराला

"छोटे से घर की लघु सीमा में
बंधे है क्षुद्र भाव,
यह सच है प्रिय
प्रेम का पयोनिधि तो उमड़ता है
सदा ही निःसीम भू पर।" ('पंचवटी प्रसंग') -निराला

"ताल-ताल से रे सदियों के जकड़े हृदय कपाट
खोल दे कर-कर कठिन प्रहार
आए अभ्यन्तर संयत चरणों से नव्य विराट
करे दर्शन पाये आभार।" -निराला

"हाँ सखि ! आओ बाँह खोलकर हम
लगकर गले जुड़ा ले प्राण
फिर तुम तम में, मैं प्रियतम में
हो जावें द्रुत अंतर्धान।" -पंत

"बीती विभावरी जाग री !
अम्बर-पनघट में डूबो रही
तारा-घट-ऊषा-नागरी।" -प्रसाद

"दिवसावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही है
वह संध्या सुंदरी परी-सी
धीरे-धीरे-धीरे। ('संध्या सुंदरी')" -निराला

"छोड़ द्रुमों की मृदु छाया
तोड़ प्रकृति से भी माया
बाले तेरे बाल-जाल में
कैसे उलझा दूँ लोचन ?" -पंत

"नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पग तल में पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।
('कामायनी')" -प्रसाद

"मैं नीर भरी दुःख की बदली -महादेवी
तुमको पीड़ा में ढूँढा
तुमको ढूँढेगी पीड़ा" -महादेवी

"नील परिधान बीच सुकुमार
खुल रहा मृदुल अधखुला अंग
खिला हो ज्यों बिजली का फूल
मेघ बीच गुलाबी रंग। ('कामायनी')" -प्रसाद

"तोड़ दो यह झितिज, मैं भी देख लूं उस ओर क्या है ?
जा रहे जिस पंथ से युग कल्प, उसका छोर क्या है ?" -महादेवी

"स्तब्ध ज्योत्सना में जब संसार
चकित रहता शिशु सा नादान,
विश्व के पलकों पर सुकुमार
विचरते है स्वप्न अजान !
न जाने, नक्षत्रों से कौन ?
निमंत्रण देता मुझको मौन !!" ('मौन निमंत्रण') -पंत

"ले चल वहाँ भुलावा देकर
मेरे नाविक ! धीरे-धीरे।
जिस निर्जन में सागर लहरी
अम्बर के कानों में गहरी
निश्छल प्रेम कथा कहती हो
तज कोलाहल की अवनी रे।" ('लहर') -प्रसाद

"हिमालय के आंगन में जिसे प्रथम किरणों का दे उपहार" -प्रसाद

"राजनीति का प्रश्न नहीं रे आज
जगत के सम्मुख एक वृहत सांस्कृतिक समस्या जग के निकट उपस्थित" -पंत

"छोड़ो मत ये सुख का कण है।" -प्रसाद

"आह ! वेदना मिली विदाई। ('स्कंदगुप्त')" -प्रसाद

"जिए तो सदा उसी के लिए यही अभिमान रहे यह हर्ष निछावर कर दे हम सर्वस्व हमारा प्यारा भारतवर्ष। ('स्कंदगुप्त')" -प्रसाद

"अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।''
('चन्द्रगुप्त') -प्रसाद

"हिमाद्रि तुंग श्रृंग से
प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्जवला
स्वतंत्रता पुकारती
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ है-बढ़े चलो, बढ़े चलो।" ('चन्द्रगुप्त') -प्रसाद

"भारत माता ग्रामवासिनी।" -पंत

"भारति जय विजय करे।" -निराला

"शेरो की माँद में
आया है आज स्यार
जागो फिर एक बार।" -निराला

"वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।" -निराला

"वह तोड़ती पत्थर।
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर।" -निराला

"वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान।
उमड़ कर आँखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान।।" -पंत

"विजय-वन-वल्लरी पर
सोती थी सुहाग भरी
स्नेह-स्वप्न-मग्न-अमल-कोमल तन तरुणी
जूही की कली
दृग बंद किए, शिथिल पत्रांक में।" ('जूही की कली') -निराला

"खुल गये छंद के बंध
प्रास के रजत पाश।" -पंत

"सहज प्रकाशन वह मन का
निज भावों का प्रकट अकृत्रिम चित्र।" -निराला

"तुम कोलाहल में
मैं हृदय की बात रे मन।" ('कामायनी') -प्रसाद

"प्रथम रश्मि का आना रंगिणि ! तूने कैसे पहचाना ?" -पंत

"जो घनीभूत पीड़ा थी
मस्तक में स्मृति-सी छाई,
दुर्दिन में आँसू बनकर
वह आज बरसने आई।" ('आँसू') -प्रसाद

"बाँधों न नाव इस ठाँव, बंधु !
पूछेगा सारा गाँव, बंधु !" -निराला

"हाय ! मृत्यु का ऐसा अमर अपार्थिव पूजन।
जब विषण्ण निर्जीव पड़ा हो जग का जीवन।"
(ताज -'युगांत') -पंत

''प्रसाद पढ़ाने योग्य हैं, निराला पढ़े जाने योग्य है और पंतजी से काव्यभाषा सीखने योग्य है'।" -अज्ञेय

"छायावादी कविता का गौरव अक्षय है उसकी समृद्धि की समता केवल भक्ति काव्य ही कर सकता है। -डॉ० नगेन्द्र

'निराला से बढ़कर स्वच्छंदतावादी कवि हिन्दी में नहीं है'।" -हजारी प्रसाद द्विवेदी

"'मैं मजदूर हूँ, मजदूरी किए बिना मुझे भोजन करने का अधिकार नहीं'।' -प्रेमचंद्र

"अधिकार सुख कितना मादक और सारहीन है।'' (स्कंदगुप्त') -प्रसाद

"स्नेह निर्झर बह गया है "-निराला

"औ वरुणा की शांत कछार" -प्रसाद

"सजनि मधुर निजत्व दे कैसे मिलू अभिमानिनी मैं।" -महादेवी वर्मा

"प्रिय के हाथ लगाए जागी, ऐसी मैं सो गई अभागी।" -निराला

"अधरों में राग अमंद पिये, अलकों में मलयज बंद किये तू अब तक सोई है आली, आँखों में भरे विहाग री।" -प्रसाद

"कहो तुम रूपसि कौन, व्योम से उत्तर रही चुपचाप।"-पंत

"शैया सैकत पर दुग्ध धवल तन्वंगी गंगा ग्रीष्म विकल।" -पंत

''साहित्य, राजनीति के पीछे चलनेवाली सच्चाई नहीं, बल्कि उसके आगे मशाल दिखाती हुई चलनेवाली सच्चाई है।" -प्रेमचंद (प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष पद से बोलते हुए, 1936)

छायावादयुगीन रचना एवं रचनाकार:-

(A) छायावादी काल धारा   

उर्वशी, वनमिलन, प्रेमराज्य, अयोध्या का उद्धार, शोकोच्छवास, बभ्रूवाहन,
कानन कुसुम, प्रेम पथिक, करुणालय, महाराणा का महत्व; झरना, आँसू, लहर,
कामायनी (केवल झरना से लेकर कामायनी तक छायावादी कविता है)  -जयशंकर प्रसाद

अनामिका, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, सरोज
स्मृति (कविता), राम की शक्ति पूजा (कविता) ' - निराला'

उच्छवास, ग्रन्थि, वीणा, पल्लव, गुंजन (छायावादयुगीन); युगान्त, युगवाणी, ग्राम्या, स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूलि, रजतशिखर, उत्तरा, वाणी, पतझर, स्वर्ण काव्य, लोकायतन सुमित्रानंदन -पंत

नीहार, रश्मि, नीरजा व सांध्य गीत (सभी का संकलन 'यामा' नाम से) - महादेवी वर्मा

रूपराशि, निशीथ, चित्ररेखा, आकाशगंगा  - राम कुमार वर्मा

राका, मानसी, विसर्जन, युगदीप, अमृत और विष  - उदय शंकर भट्ट

निर्माल्य, एकतारा, कल्पना मोहनलाल मेहतो 'वियोगी'

अन्तर्जगत - लक्ष्मी नारायण मिश्र

अनुभूति, अन्तर्ध्वनि - जनार्दन प्रसाद झा 'द्विज'

(B) राष्ट्रवादी सांस्कृतिक काव्य धारा रचनाकार:-

कैदी और कोकिला, हिमकिरीटिनी, हिम तरंगिनी, पुष्प की अभिलाषा -  माखन लाल चतुर्वेदी
मौर्य विजय, अनाथ, दूर्वादल, विषाद, आर्द्रा, पाथेय, मृण्मयी, बापू, दैनिकी - सिया राम शरण गुप्त
त्रिधारा, मुकुल, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी (क०), वीरों का कैसा हो वसंत - सुभद्रा कुमारी चौहान

छायावादोत्तर युग (1936 ई० के बाद):-

छायावादोत्तर युग में हिन्दी काव्यधारा बहुमुखी हो जाती है-

(A) पुरानी काव्यधारा रचनाकार:

राष्ट्रीय-सांस्कृतिक काव्यधारा सियाराम शरण गुप्त, माखन लाल चतुर्वेदी, दिनकर, बालकृष्ण शर्मा 'नवीन', सोहन लाल द्विवेदी, श्याम नारायण पाण्डेय आदि।
उत्तर-छायावादी काव्यधारा निराला, पंत, महादेवी, जानकी वल्लभ शास्त्री आदि।

(B) नवीन काव्यधारा रचनाकार

वैयक्तिक गीति कविता धारा
(प्रेम और मस्ती की काव्य धारा) बच्चन, नरेंद्र शर्मा, रामेश्वर शुक्ल 'अंचल', भगवती चरण वर्मा, नेपाली,
आरसी प्रसाद सिंह आदि।

प्रगतिवादी काव्यधारा केदारनाथ अग्रवाल, राम विलास शर्मा, नागार्जुन, रांगेय राघव, शिवमंगल सिंह
'सुमन', त्रिलोचन आदि।

प्रयोगवादी काव्य धारा अज्ञेय, गिरिजा कुमार माथुर, मुक्तिबोध, भवानी प्रसाद मिश्र, शमशेर बहादुर सिंह, धर्मवीर भारती आदि।

Post Navi

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ