शरद जोशी (१९३१-१९९१)

शरद जोशी


शरद जोशी
जन्म-21 मई 1931उज्जैन
मृत्यु-5 सितम्बर 1991 (उम्र 60)मुंबई
व्यवसाय-लेखक, कवि
राष्ट्रीयता-भारतीय

'शरद जोशी' (१९३१-१९९१) हिन्दी जगत के प्रमुख व्यंगकार

शरद जोशी का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में २१ मई १९३१ को हुआ।

जीवन परिचय - कुछ समय तक यह सरकारी नौकरी में रहे, फिर इन्होंने लेखन को ही आजीविका के रूप में अपना लिया।

लेखन परिचय:-

आरम्भ में कुछ कहानियाँ लिखीं, फिर पूरी तरह व्यंग्य-लेखन ही करने लगे। इन्होंने व्यंग्य लेख, व्यंग्य उपन्यास, व्यंग्य कॉलम के अतिरिक्त हास्य-व्यंग्यपूर्ण धारावाहिकों की पटकथाएँ और संवाद भी लिखे। हिन्दी व्यंग्य को प्रतिष्ठा दिलाने प्रमुख व्यंग्यकारों में शरद जोशी भी एक हैं। इनकी रचनाओं में समाज में पाई जाने वाली सभी विसंगतियों का बेबाक चित्रण मिलता है।

प्रमुख व्यंग्य-कृतियाँ :-

गद्य रचनाएँ परिक्रमा, किसी बहाने, जीप पर सवार इल्लियाँ, रहा किनारे बैठ, दूसरी सतह, प्रतिदिन(3 खण्ड), यथासंभव, यथासमय, यत्र-तत्र-सर्वत्र, नावक के तीर, मुद्रिका रहस्य, हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, झरता नीम शाश्वत थीम, जादू की सरकार, पिछले दिनों, राग भोपाली, नदी में खड़ा कवि, घाव करे गंभीर, मेरी श्रेष्ठ व्यंग रचनाएँ,

व्यंग्य नाटक :-

अंधों का हाथी, एक था गधा उर्फ अलादाद खाँ

उपन्यास:-

मैं, मैं और केवल मैं उर्फ़ कमलमुख बी0ए0

टीवी धारावाहिक यह जो है जिंदगी, मालगुड़ी डेज, विक्रम और बेताल, सिंहासन बत्तीसी, वाह जनाब, दाने अनार के, यह दुनिया गज़ब की, लापतागंज,

फिल्मी सम्वाद क्षितिज, गोधूलि, उत्सव, उड़ान, चोरनी, साँच को आँच नहीं, दिल है कि मानता नही

कहते हैं जब जब दुनिया पर पाप और अधर्म बढ़ता है तब तब भगवान अवतार लेते हैं। इस बात में कितनी सच्चाई है इसके बारे में तो हम नहीं कह सकते लेकिन हां जब जब विकृतियों और भ्रष्टाचार का बोल बाला होता है तब तब कोई ना कोई आवाज ऐसी उठ ही जाती है जो इनके खिलाफ सच बोल सके, समाज को एक आइना दिखा सके। ऐसे समय में किसी हथियार से ज्यादा जरूरत होती है ऐसे शब्दों की जो दिल में चुभें तो जरूर लेकिन सच का आभास होने की खुशी भी दे जाएं।

ऐसी ही एक आवाज थे हिंदी के कथाकार, व्यंग्यकार, पटकथा लेखक शरद जोशी। उनके तीखे व्यंग्यों ने हमेशा ही शासकों और जनता पर हो रहे शोषण पर करार प्रहार किया है। उन्होंने एक आम आदमी की सही और गलत में अंतर जानने में भरपूर मदद की।

उनके व्यंग्य कितने धारदार होते थे उसका अंदाज़ा आप उनके इस छोटे से व्यंग्य से लगा सकते हैं। ट्रेनों के बढ़ते हादसे पर उन्होंने व्यंग्य करते हुए लिखा था कि ‘अरे रेल चल रही है और आप उसमें जीवित बैठे हैं, यह अपने आप में कम उपलब्धि नहीं है।’

शरद जोशी का जन्म 21 मई, 1931 को मध्यप्रदेश के उज्जैन में हुआ था। लेखन में इनकी रुचि शुरू से ही थी। उन्होंने मध्यप्रदेश सरकार के सूचना एवं प्रकाशन विभाग में काम किया, लेकिन बाद में सरकारी नौकरी छोड़कर पूरा समय लेखन को दिया। जोशी इंदौर में ही रहकर रेडियो और समाचारपत्रों के लिए लिखने लगे। उन्होंने कई कहानियां भी लिखीं, लेकिन व्यंग्यकार के रूप में ही स्थापित हुए।

शरद जोशी भारत के पहले व्यंग्यकार थे, जिन्होंने सन् 1968 में पहली बार मुंबई में चकल्लस के मंच पर, जहां हास्य कविताएं पढ़ी जाती थीं, गद्य पढ़ा और हास्य-व्यंग्य में अपना लोहा मनवाया। उन्होंने अपने वक्त की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक विसंगतियों को बड़ी पैनी निगाह से देखा और उन पर चुटीले अंदाज में लिखा, इसलिए अधिक लोकप्रिय भी हुए।

जितने अनोखे शरद जी के व्यंग थे उतना ही दिलचस्प और अनोखा उनका जीवन। लिखने के लिए उन्होंने समझदार कहलाने वाली उम्र तक का इंतजार नहीं किया बल्कि वो स्कूल के समय से ही लिखने लगे। इतना ही नहीं उन्होंने अपने कुछ मित्रों को साथ ले कर एक संस्था बनाई जिसका नाम ‘बाल साहित्य’ रखा। कोई बच्चा अपने जेब खर्च से भला खाने पीने के आलावा और क्या कर सकता है ? किन्तु शरद जी ने जेब खर्च को खाने पीने पर उड़ाने की बजाए हस्तलिखित पत्रिका ‘हंसोड़’ निकालना शुरू किया। पत्रिका के संपादक स्वयं शरद जोशी ही थे।

असल में शरद जी की माँ चाहती थीं कि उनका बेटा पढ़ लिख कर किसी पोस्ट ऑफिस में नौकरी करे। ये भी कमाल की इच्छा थी ना! कोई भी माँ चाहेगी कि उसका बेटा पढ़ लिख कर किसी बड़ी पोस्ट पर हो। लेकिन ये पोस्ट ऑफिस में काम करने का अरमान….! लेकिन इसके पीछे भी उनकी माँ की एक मासूम सी सोच थी। असल में उनकी माँ को लगता था देश में हर तरफ भ्रष्टाचार का बोल बाला है ऐसे में पोस्ट ऑफिस ही हैं जहाँ पर ईमानदारी बची है और वहां बिना किसी भेदभाव के टिकट और लिफाफे सबको एक दाम पर दिए जाते हैं।

शरद जोशी ने कालेज के जमाने से ही इंदौर से प्रकाशित हिंदी दैनिक ‘नई दुनिया’ में कॉलम लिखना शुरू कर दिया था। गमे रोजगार से मजबूर होकर मध्य प्रदेश सरकार की नौकरी की तो उनके आजाद और बेबाक लेखन के नतीजे में नौकरी भी छोड़नी पड़ी। कला और संस्कृति के सरकारी आकाओं से इस कदर विवाद हुए कि भोपाल में अपने परिवार को छोड़ बंबई जा पहुंचे।

‘दूसरी सतह’, ‘प्रतिदिन’, ‘परिक्रमा’ और ‘किसी बहाने’ शरद जोशी की लिखी प्रमुख व्यंग्य-कृतियां हैं। वह अपने व्यंग्य की छाप पाठक पर बिहारी के दोहों की तरह छोड़ देते थे। उन्होंने ‘क्षितिज’, ‘छोटी सी बात’, ‘सांच को आंच नहीं’ और ‘उत्सव’ जैसी फिल्मों की पटकथा भी लिखी।

शरद जोशी की व्यंग्यपूर्ण रचनाओं में जो हास्य, कड़वाहट, मनोविनोद और चुटीलापन है, वही उनके जनप्रिय रचनाकार होने कर आधार है। उन्होंने टेलीविजन के लिए भी कई धारावाहिक लिखे। उनके लिखे धारावाहिक ‘ये जो है जिंदगी’, ‘विक्रम बेताल’, ‘वाह जनाब’, ‘देवी जी’, ‘ये दुनिया गजब की’, ‘दाने अनार के’ और ‘लापतागंज’ को कौन भूल सकता है! उन्होंने ‘मैं, मैं, केवल मैं’ और ‘उर्फ कमलमुख बी।ए।’ जैसे उपन्यास भी लिखे।

नई दुनिया, कादंबरी, ज्ञानोदय, रविवार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स जैसी पत्र-पत्रिकाओं के लिए भी उन्होंने नियमित स्तंभ और बहुत कुछ लिखा। मध्यप्रदेश सरकार ने इनके नाम पर ‘शरद जोशी सम्मान’ भी शुरू किया। 5 सितंबर, 1991 को मुंबई में उनका निधन हो गया।

आज इस महान ‘व्यंग्यकार’ के जन्मदिन पर उन्हें कोटि कोटि प्रणाम करते हैं। उनका शरीर भले ही हमारे बीच से चला गया हो किन्तु उनके लिखे ‘व्यंग्य'’ हमेशा ही हमें सच का आभास करते रहेंगे। यहां व्यंग्य को व्यंग इसलिए लिखा गया है क्योंकि शरद जोशी व्यंग्य को व्यंग कहने के हिमायती थे। उनका मनना था कि अगर लोग व्यंग कहते हैं तो व्यंग्य नहीं उसे व्यंग ही लिखा जाना चाहिए।
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