गोस्वामी तुलसीदास

गोस्वामी तुलसीदास

  • नाम -गोस्वामी तुलसीदास
  • बचपन का नाम- रामबोला
  • जन्म- सन 1532 (संवत- 1589)
  • जन्म भूमि- राजापुर, उत्तर प्रदेश ( आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार)
  • नोट:- कुछ इतिहासकार इनका जन्म स्थान 'सोरों' क्षेत्र (उत्तर प्रदेश) को मानते हैं सर्वप्रथम श्री गौरी शंकर द्विवेदी ने सवरचित 'सुकवि सरोज' (1927 ईस्वी) पुस्तक में इनका संबंध 'सोरो' क्षेत्र से स्थापित किया था|
  • पंडित रामनरेश त्रिपाठी ने भी इनका जन्म स्थान 'सोरों' स्वीकार किया है|
  • मृत्यु- सन 1623 (संवत- 1680)
  • मृत्यु स्थान- काशी
तथ्य:-
"
संवत् सोरह सौ असी,असी गंग के तीर|
श्रावण शुक्ला सप्तमी,तुलसी तज्यो शरीर||"
अभिभावक - आत्माराम दुबे और हुलसी

नोट:-" सुरतिय,नरतिय,नागतिय,सब चाहति अस कोय |
गोद लिए हुलसी फिरै, तुलसी सो सुत होय ||"

- इस पद में प्रथम पंक्ति 'तुलसीदास' जी के दवारा एवं द्वित्य पंक्ति उनके घनिष्ठ मित्र 'रहीम दास' जी के द्वारा रचित है|

  • #पालन-पोषण- दासी चुनियां एवं बाबा नरहरिदास
  • #भक्ति पद्धति- दास्य भाव
  • #पत्नी - रत्नावली (दीनबंधु पाठक की पुत्री)
  • नोट:- अपनी पत्नी की प्रेरणा से ही इन को ज्ञान की प्राप्ति हुई मानी जाती है पत्नी के दवारा बोले गए निम्न कथनों को सुनकर ही यह राम भक्ति की ओर उन्मुख हुए थे:-
"लाज न आवत आपको, दौरे आयहु साथ|
धिक-धिक एसे प्रेम को, कहा कहौं मैं नाथ ||
अस्थि चर्म मय देह मम, तामैं एसी प्रीति |
तैसी जौं श्रीराम महँ, होती न तौ भवभीति ||"
  • कर्म भूमि- बनारस
  • कर्म-क्षेत्र -कवि, समाज सुधारक
  • विषय - सगुण राम भक्ति
  • भाषा -अवधी, ब्रज
  • गुरु -नरहरिदास व शेष सनातन
  • नोट:- नरहरिदास ने ही इनका नाम रामबोला से बदलकर तुलसी रखा|
  • रचनाएं:-
रामचरितमानस- 1574 ई. (1631 वि. )चैत्र शुक्ल नवमी वार मंगलवार
  • भाषा- अवधी
  • रचना मे लगा समय- 2 वर्ष, 7 माह
  • रचना शैली- चौपाई+दोहा/सोरठा शैली
  • प्रधान रस व अलंकार- शांत रस व अनुप्रास अंलकार
  • काव्य स्वरूप-प्रबंधात्मक काव्यातर्गत 'महाकाव्य'
  • काल विभाजन:- सात काण्डों में-
    • बाल कांड
    • अयोध्या कांड
    • अरण्य कांड
    • किष्किन्धा कांड
    • सुन्दर कांड
    • लंका कांड
    • उत्तर कांड
  • इस रचना को उत्तर भारत की बाइबिल कहा जाता है|
विनयपत्रिका :-

  • रचनाकाल- 1582 ई. (1639 वि.),मिथिला यात्रा प्रस्थान के समय
  • कुलपद- 279
  • भाषा- ब्रज
  • प्रधान रस- शांत
  • रचना शैली- गीति शैली
  • - इस रचना में इनके स्वयं के जीवन के बारे में भी उल्लेख प्राप्त होता है अंत: कुछ इतिहासकार कहते हैं -"तुलसी के राम को जानने के लिए रामचरितमानस पढ़ना चाहिए तथा स्वयं तुलसी को जानने के लिए विनय पत्रिका"|
  • - इस ग्रंथ की रचना तुलसी ने राम के दरबार में भेजने के लिए की थी, जिसका उद्देश्य 'कली काल से मुक्ति प्राप्त करना' था|
  • - इसमें 21 रागों का प्रयोग हुआ है|
गीतावली:-
  • रचनाकाल- 1571 ई.
  • कुल पद- 328
  • विभाजन- सात कांडो में
  • रचना शैली- गीतिकाव्य शैली
  • प्रधान रस- श्रृंगार रस (वात्सल्य युक्त)
  • - बाबा बेनी माधव दास द्वारा रचित 'मूल गोसाई चरित' के अनुसार यह तुलसीदास की प्रथम रचना मानी जाती है|
  • - इस ग्रंथ का आरंभ राम के जन्मोत्सव से होता है|
  • - इस रचना के अनेक पदों में 'सूरसागर' की समानता देखने को मिलती है |
  • -इस में 21 रागों का प्रयोग हुआ है|
कवितावली:-
  • रचनाकाल-1612 ई. लगभग
  • कुल पद- 325 छंद
  • भाषा- ब्रज
  • शैली- कवित, सवैया शैली
  • रचना स्थल- सीतावट के तट पर
  • काव्य विभाजन - सात कांड
  • प्रधान रस- वीर ,रौद्र व भयानक रस
  • - कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह तुलसीदास की अंतिम रचना मानी जाती है|
  • - इस रचना में लंका दहन का उत्कृष्टतम वर्णन किया गया है जिसको देखकर यह कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन में कभी भयंकर आग अवश्य देखी थी|
रामलला नहछू:- 1582  

भाषा-अवधी
  • - यह सोहर छंद में रचित रचना मानी जाती है| कुल 20 छंद है|
  • - इस रचना में राम का नहछु (विवाह के अवसर पर महिलाओं द्वारा गाया जाने वाले गीत) वर्णित हैं|
वैराग्य-संदीपनी:- 1612 ई.
  • भाषा-ब्रज
  • - इस में कुल 62 छंद हैं जिनको 3 प्रकार के छंदों (दोहा, सोरठा व चौपाई) में लिखा गया है|
बरवै रामायण-1612 ई.
  • भाषा-अवधी
  • कुल छंद-69 (सभी 'बरवै'छंद)
  • कांड-सात
  • - इस रचना के प्रारंभ में तुलसीदास जी द्वारा रस एवं अलंकार निरूपण का प्रयास भी किया गया है|
  • - यह रचना इनके परम मित्र 'रहीमदास' के आग्रह पर रची मानी जाती है|
पार्वती मंगल:-1582 ई.
  • भाषा-अवधी
  • कुल छंद-164 ( इसमें 148 में अरुण या मंगल छंद का व 16 में हरिगीतिका छंद प्रयुक्त हुआ है|)
  • - इसमें शिव पार्वती विवाह का वर्णन है|
  • #जानकीमंगल:- 1582 ई.
  • भाषा:- अवधी
  • कुल छंद-216 ( इसमें 192 अरुण व शेष 24 में हरिगीतिका छंद प्रयुक्त हुआ है)
  • - इसमें राम व सीता के विवाह का वर्णन किया गया है|
  • - रामललानहछू, पार्वती मंगल, जानकी-मंगल इन तीनों ग्रंथों की रचना इन्होंने मिथिला यात्रा में की थी
रामज्ञा प्रश्नावली- 1612 ई.
  • भाषा:-ब्रज व अवधी
  • - यह ग्रंथ 7 सर्गो में विभाजित है प्रत्येक सर्ग में सात सप्तक हैं और प्रत्येक सप्तक में 7 दोहे हैं इस प्रकार को 343 छंद है|
  • - इसके प्रत्येक दोहे से शुभ अशुभ संकेत निकलता है जिसे प्रश्नकर्ता अपने प्रश्न का उत्तर पा लेता है|
  • - यह रचना पंडित गंगाराम ज्योतिषी के आग्रह पर रची मानी जाती हैं|
दोहावली:- 1583 ई.
  • भाषा:-ब्रज
  • कुल दोहे- 573
  • - इसमें जातक के माध्यम से प्रेम की अनन्यता का चित्रण किया गया है|
कृष्ण गीतावली:- 1571 ई.
  • भाषा- ब्रज
  • - इस रचना में सूरदास की भ्रमरगीत परंपरा का निर्वहन हुआ है|
  • - यह रचना राम गीतावली के समकालीन मानी जाती है|
  • - इस में कुल 61 पद हैं|
तुलसी की रचनाओं के संबंध में विद्वानों के तथ्य:-
  • - पंडित राम गुलाब द्विवेदी में इनके द्वारा रचित 12 रचनाओं का उल्लेख किया है|
  • - बाबा बेनी माधव दास ने स्वरचित 'मूल गोसाई चरित' रचना में इनके ग्रंथों की संख्या 13 मानी है तथा इन 13 में 'कवितावली' का नाम उल्लेख प्राप्त नहीं होता है|
  • - ठाकुर शिवसिंह सेंगर ने स्वरचित 'शिवसिंह सरोज' रचना में तुलसी द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या 18 मानी है|
  • - एनसाइक्लोपीडिया ऑव् रिलीजन एण्ड एथिक्स- 12 ग्रंथ (प्रमाणिक रूप से स्वीकृत) मानें है|
  • - मिश्रबंधुओं ने स्व रचित 'हिंदी नवरत्न' रचना में तुलसी द्वारा रचित 25 ग्रंथों का उल्लेख किया है जिनमें 13 अप्रमाणिक एवं 12 प्रमाणिक माने गए हैं|
  • - नागरी प्रचारणी सभा, काशी की खोज रिपोर्ट 'तुलसी' नामक कवि की 37 रचनाओं का उल्लेख किया गया है, परंतु 1923 ईस्वी में सभा ने तुलसीदास के केवल 12 ग्रंथों को प्रमाणिक मान कर उनका प्रकाशन 'तुलसी ग्रंथावली' (खंड 1 2) के रुप में किया है|
  • - आचार्य रामचंद्र शुक्ल एवं लाला सीता राम नें भी तुलसीदास की 12 रचनाओं को प्रमाणिक माना है|
विशेष-तथ्य:-
  • - इन्होंने 'हनुमान बाहुक' की रचना अपने किसी अनिष्ट निवारण के लिए की थी वर्तमान में अधिकतर विद्वान इस रचना को 'कवितावली' रचना का ही एक भाग मानते हैं |सर्वप्रथम पंडित राम गुलाम दिवेदी ने इसे 'कवितावली' रचना का भाग माना था|
  • - भक्तमाल के रचयिता 'नाभादास' ने इनको 'कलिकाल का वाल्मीकि ' कहकर पुकारा है|
  • - ग्रियर्सन ने इनको 'महात्मा बुद्ध के बाद दूसरा बड़ा लोकनायक' कहकर पुकारा है|
  • - पाश्चात्य विद्वान 'विंसेंट स्मिथ' महोदय ने इनको 'मुगलकाल का सबसे बड़ा आदमी' कहकर पुकारा है|
  • - डॉक्टर मधुसुदन सरस्वती ने उनको 'आनंदवन का वृक्ष ' कहकर पुकारा है|
  • - आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इनको 'हिंदी का जातीय कवि' कहकर पुकारा है- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उनकी प्रशंसा में लिखा है -"अपरिमित धैर्य लेकर एक पुत्र पैदा हुआ, जिसने भारत में समन्वय की चेष्टा की| इनका काव्य जीवन दो कोटियों को मिलाने वाला काव्य है|"
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तुलसीदास का जीवन परिचय


तुलसीदास जी हिंदी साहित्य के महान कवि थे, लोग तुलसी दास को वाल्मीकि का पुनर्जन्म मानते है। तुलसी दास जी अपने प्रसिद्ध कविताओं और दोहों के लिए जाने जाते हैं। उनके द्वारा लिखित महाकाव्य रामचरित मानस पूरे भारत में अत्यंत लोकप्रिय हैं। तुलसी दास जी ने अपना ज्यादातर समय वाराणसी में बिताया है। 

तुलसीदास जी जिस जगह गंगा नदी के किनारे रहते थे उसी जगह का नाम तुलसी घाट रखा गया और उन्होंने वहां संकट मोचन हनुमान का मंदिर बनाया था। लोगों का मानना है कि वास्तविक रूप से हनुमान जी से तुलसी दास जी वहीं पर मिले थे, और तुलसी दास जी ने रामलीला की शुरुआत की।

तुलसीदास जी का जन्म और प्रारंभिक जीवन

तुलसीदास जी का जन्म 1511 ई. में हुआ था। इनके जन्म स्थान के बारे में काफी मतभेद है, परन्तु अधिकांश विद्वानों के अनुसार इनका जन्म राजापुर, चित्रकूट जिला, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनके बचपन का नाम रामबोला था और इनके पिता जी का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। तुलसी दास के गुरु का नाम नर हरिदास था।

अक्सर लोग अपनी मां की कोख में 9 महीने रहते हैं लेकिन तुलसी दास जी अपने मां के कोख में 12 महीने तक रहे और जब इनका जन्म हुआ तो इनके दाँत निकल चुके थे और उन्होंने जन्म लेने के साथ ही राम नाम का उच्चारण किया जिससे इनका नाम बचपन में ही रामबोला पड़ गया।

जन्म के अगले दिन ही उनकी माता का निधन हो गया। इनके पिता ने किसी और दुर्घटनाओं से बचने के लिए इनको चुनिया नामक एक दासी को सौंप दिया और स्वयं सन्यास धारण कर लिए। चुनिया रामबोला का पालन पोषण कर रही थी और जब रामबोला साढ़े पाँच वर्ष का हुआ तो चुनिया भी चल बसी। अब रामबोला अनाथों की तरह जीवन जीने के लिए विवश हो गया।

तुलसीदास के गुरु 

तुलसीदास के गुरु नर हरिदास को बहुचर्चित रामबोला मिला और उनका नाम रामबोला से बदलकर तुलसी राम रखा और उसे अयोध्या उत्तर प्रदेश ले आए। तुलसी राम जी ने संस्कार के समय बिना कंठस्थ किए गायत्री मंत्र का स्पष्ट उच्चारण किया। यह देख सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए। तुलसी राम जी काफी तेज बुद्धि वाले थे, वे जोभी एक बार सुन लेते थे तो उन्हें कंठस्थ हो जाता था।

तुलसीदास का विवाह 

29 वर्ष की अवस्था में राजापुर के निकट स्थित यमुना के उस पार तुलसीदास विवाह एक सुंदर कन्या रत्नावली के साथ हुआ। गौना न होने की वजह से वह कुछ समय के लिए काशी चले गए। काशी में रहकर हुए वेद वेदांग के अध्ययन में जुट गए। अचानक उनको अपनी पत्नी रत्नावली की याद सतायी और वह व्याकुल होने लगे तभी उन्होंने अपने गुरु से आज्ञा लेकर राजापुर आ गए।

उनका अभी गौना नहीं हुआ था तो उनकी पत्नी मायके में ही थी, अंधेरी रात में ही यमुना को तैरकर पार करते हुए अपनी पत्नी के कक्ष पहुँचे गए। उनकी पत्नी ने उन्हें लोक-लज्जा के भय से वापस चले जाने के लिए आग्रह किया। उनकी पत्नी रत्नावली स्वरचित एक दोहे के माध्यम से उनको शिक्षा दी। ये दोहा सुनने के बाद तुलसी राम से तुलसी दास बन गए।

वह दोहा इस प्रकार है-

अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति।
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत।।

ये दोहा सुनकर वे अपनी पत्नी का त्याग करके गांव चले गए और साधू बन गए, और वहीं पर रहकर भगवान राम की कथा सुनाने लगे। उसके बाद 1582 ई. में उन्होंने श्री रामचरितमानस लिखना प्रारंभ किया और 2 वर्ष 7 महीने 26 दिन में यह ग्रंथ संपन्न हुआ।

राम दर्शन 

तुलसी दास जी हनुमान की बातों का अनुसरण करते हुए चित्रकूट के रामघाट पर एक आश्रम में रहने लगे और एक दिन कदमगिरी पर्वत की परिक्रमा करने के लिए निकले। माना जाता है वहीं पर उन्हें श्रीराम जी के दर्शन प्राप्त हुए थे। इन सभी घटनाओं का उल्लेख उन्होंने गीतावली में किया है।

तुलसीदास जी की मृत्यु

उन्होंने अपनी अंतिम कृति विनयपत्रिका को लिखा और 1623 ई. में  श्रावण मास तृतीया को राम-राम कहते हुए अपने शरीर का परित्याग कर दिया और परमात्मा में लीन हो गए।

तुलसीदास जी द्वारा लिखित ग्रन्थ

तुलसी दास जी ने अपने देश जीवनकाल में काफी ग्रंथों को लिखा है जो कि निम्नलिखित है

श्री रामचरितमानस, सतसई, बैरव रामायण, पार्वती मंगल, गीतावली, विनय पत्रिका, वैराग्य संदीपनी, रामललानहछू, कृष्ण गीतावली, दोहावली और कवितावली आदि है। तुलसीदास जी ने अपने सभी छन्दों का प्रयोग अपने काव्यों में किया है।  

इनके प्रमुख छंद हैं दोहा सोरठा चौपाई कुंडलिया आदि, इन्होंने शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों का भी प्रयोग अपने काव्यों और ग्रंथो में किया है और इन्होंने सभी रसों का प्रयोग भी अपने काव्यों और ग्रंथों में किया है ,इसीलिए इनके सभी ग्रंथ काफी लोकप्रिय रहे हैं।

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