आधुनिक कालीन प्रबंध काव्य
◆ अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध - "प्रियप्रवास" (1914) (हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य)
प्रियप्रवास राधा कृष्ण प्रेम की परंपरा को अनूठे ढंग से प्रस्तुत करने वाला एक प्रसिद्ध महाकाव्य है कंस के निमंत्रण पर कृष्ण अक्रूर के साथ मथुरा चले जाते हैं और फिर लौट कर नहीं आते हैं उनके इस प्रवास का वर्णन ही प्रिय प्रवास का विषय है इसकी कथावस्तु भागवत पुराण पर आधारित है इसके अनेक प्रसंगों में नवीनता परिलक्षित होती है जैसे-
1. राधा ने पवन के माध्यम से संदेश प्रेषित किया है।
2. राधा के परंपरागत और सामाजिक एवं नीति विरुद्ध प्रणय व्यापार को स्वस्थ एवं दिव्य रूप प्रदान करने का प्रयास किया गया है।
3. राधा का परकिया रूप अलग होकर देश सेविका के रूप में ढल गया है ।
"वे छाया थी सूजन सिर की शासिका थी खलों की। कंगालो की परमनिधि थी औषधि पीड़ितों की।।
4. प्रियप्रवास में श्री कृष्ण को महापुरुष के रूप में चित्रित किया गया है ब्रह्मा के रूप में नहीं
◆ पारिजात 1927 ई.
पारिजात को हरिऔध जी ने जी ने स्वयं महा काव्य की संज्ञा दी है इसमें विभिन्न आध्यात्मिक विषयों का 15 सर्गों में प्रस्तुतीकरण किया गया है इस काव्य ग्रंथ में आधुनिक नेताओं एवं समाज सुधारकों की प्रतिष्ठा अवतार के रूप में की गई है।
◆ वैदेही वनवास 1941
यह प्रबंध काव्य मूलतः वाल्मीकि रामायण की कथा पर आधारित है इसमें वाल्मीकि रामायण ,रघुवंश और उत्तररामचरितम् की भांति सीता निर्वासन चुपचाप न दिखाकर जन सामान्य एवं गुरुजनों द्वारा भावभीनी विदाई के चित्रण के साथ प्रस्तुत किया गया है इस काव्य में प्रकृति वर्णन मनोरम और भाषा प्रियप्रवास की अपेक्षा सरल है।
◆ जयशंकर प्रसाद-कामायनी 1936 ई.
कामायनी 15 सर्गो का छायावादी शैली का प्रथम महाकाव्य है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कामायनी को एक विशाल भावना को रूप देने वाली महत्वपूर्ण कृति और मानवता का रसात्मक महाकाव्य माना है ।कामायनी का सार इतिवृत्त मनु और श्रद्धा के मिलन वियोग पुनर्मिलन और पुनर्वियोग तथा मनु और इङा के मिलन की घटनाओं में ही सिमटा हुआ है इसके प्रमुख पात्र मनु श्रद्धा और इरा है ।मनु का व्यक्तित्व पुरुष का सबल और स्वस्थ रूप है और उसमें पुरुष की मनन शीलता स्वार्थपरता और कामुकता विद्यमान है कामायनी की श्रद्धा नारीत्व की सजीव और साकार मूर्ति है कवि ने मनु आदि के माध्यम से मानव के मनो जगत के विविध पक्षों का चित्रण किया है।
■ सुमित्रानंदन पंत लोकायतन 1964
इस प्रबंध काव्य में भारतीय जीवन की स्वाधीनता से पहले और बाद की कथा कही गई है लोकायतन को दो खंडों और 7 अध्यायों में विभक्त है प्रथम खंड का वाह्य परिवेश तथा द्वितीय खंड को अंतस चैतन्य नाम दिया गया है इसमें गांधी जी को छोड़कर अन्य सभी पात्र कल्पित हैं इसका नायक वंशी जो कवि है वंशी स्वयं पंत का प्रतिनिधित्व करता हुआ दृष्टिगोचर होता है इस कृति के माध्यम से आधुनिक मानव जीवन को सांस्कृतिक विकास का अभिनव संदेश देने का प्रयास किया गया है।
■ सुमित्रानंदन पंत
पुरुषोत्तमराम 1967 ईस्वी
इस प्रबंध काव्य में कवि ने अपनी युगीन समस्याओं को चित्रित करने का प्रयास किया है।
■ सुमित्रानंदन पंत
सत्यकाम 1975
यह प्रबंध कृति छांदोग्य उपनिषद के आख्यान पर आधारित है इसके माध्यम से कवि ने विश्व मानव की सुख शांति के लिए भौतिकवाद और अध्यात्म बाद में समन्वय स्थापित करने का संदेश दिया है।
◆ मैथिलीशरण गुप्त
विष्णु प्रिया 1957
इसमें चैतन्य महाप्रभु की पत्नी विष्णु प्रिया का गुणगान किया गया है। शची (चैतन्य की मां )और विष्णुप्रिया भारतीय मां और पत्नी है ,दोनों का आधुनिक नारी सुलभ असंतोष है फिर भी दोनों अपने पुत्र पति की मंगल कामनाओं में ही अपना सुख मानती हैं दोनों चैतन्य के गृह त्याग को न्याय संगत नहीं मानती हैं।
■ मैथिलीशरण गुप्त
साकेत 1930 12 सर्ग
साकेत को हम प्रथम आदर्श मानवतावादी महाकाव्य कह सकते हैं इसकी कथा में बाल्मीकि रामायण का प्रभाव तुलसी दर्शन की प्रेरणा और भवभूति की करुणा का संगुम्फन हो गया है पारंपरिक कथा में कवि ने अनेक मौलिक उदभावनाएं की है तथा इसकी कथा 12 सर्गों में विभक्त है साकेत में उदात्त चरित्र की दृष्टि की गई है अभिशप्त कैकई साकेत में वात्सल्यमयी मा के रूप में चित्रित की गई है इस महा काव्य में श्रृंगार रस की व्यंजना प्रमुख रूप से हुई है।
■ मैथिलीशरण गुप्त
यशोधरा 1932
यशोधरा में भगवान बुध के चरित्र से संबंध रखने वाले पात्रों के उच्च और सुंदर भावों की व्यंजना और परस्पर कथन है जिसमें कहीं-कहीं गद्द भी है इस प्रबंध कृति में नारी जीवन की मार्मिक अभिव्यक्ति साकेत से भी बढ़कर हुई है।
■ श्याम नारायण पांडे हल्दीघाटी 1941
हल्दीघाटी वीर रस प्रधान प्रबंध काव्य है इसका कथानक 17 वर्गों में विभक्त है इसकी रचना स्वाधीनता आंदोलन के दिनों में की गई थी अतः इसमें स्थान स्थान पर देशभक्ति की भावनाएं मुखरित हो उठी हैं इस काव्य के माध्यम से कवि ने विदेशी दमन चक्र के संकट काल में कवि कर्म का निर्वाह करते हुए देश के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है यह वीर रस प्रधान सफल प्रबंध काव्य है।
■ श्याम नारायण पांडे-जौहर 1945
इस प्रबंध काव्य में चित्तौड़ पर अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण और पद्मिनी के जौहर की कथा वर्णित है जौहर में हल्दीघाटी की अपेक्षा कल्पना और कला का समावेश कुछ अधिक है इस कथानक में 21 चिंगारियों (सर्गो) में विभक्त है ।कथानक का विकास एक पुजारी और पथिक की बातचीत से होता है अंतिम चिंगारी में कवि ने अपने जीवन का मुख्य घटनाओं का उल्लेख करते हुए ऐसा संकेत किया है कि यह पुजारी द्रुमग्राम का निवासी है एक दिन मां की छाया उसे पद्मिनी की गाथा को छंद बंद करने का आदेश देकर लुप्त हो जाती है जौहर की रचना उक्त आदेश के पालन में ही हुई है।
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