जैनेन्द्र कुमार 1905-1988
व्यक्तित्व
जैनेन्द्र का जन्म 1905 ई0 में अलीगढ़ (कौड़ियागंज) में हुआ था। बाल्यावस्था का नाम आनन्दीलाल था। हस्तिनापुरमें स्थापित एक गुरुकुल में आपकी प्रारम्भिक शिक्षा के लिए व्यवस्था की गयी तथा उसी संस्था में आपका वर्तमान नामकरण भी हुआ। पंजाब से मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण कर आपने उच्च शिक्षा के लिए हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में प्रवेश लिया। किन्तु, कांग्रेस के असहयोग आन्दोलन में सक्रिय सहयोग देने की प्रेरणा से पढ़ाई छोड़ कर दिल्ली चले गये। दिल्ली में आपने लगभग दो वर्ष तक व्यापार का भी काम किया। कुछ क्रान्तिकारी राजनीतिक पत्रों के संवाददाता के रूप में भी कार्य किया। जीवन की विषम परिस्थितियों में भी आपका लेखन-कार्य शिथिल नहीं हुआ। इसी बीच आपके प्रथम उपन्यास परख को अकादमी पुरस्कार मिला। राजनीतिक आन्दोलनों में सक्रिय भाग लेने के कारण आपको कई बार जेल जाना पड़ा। लेकिन अपनी साहित्य-साधना में कभी अवरोध नहीं आने दिया। 24 दिसम्बर, 1988 ई0 में आपका निधन दिल्ली में हुआ।
कृतित्व
जैनेन्द्र की कहानी संग्रह हैं—फाँसी,वातायन,नीलम देश की राजकन्या,एक रात, दो चिड़ियाँ, पाजेब तथा जयसन्धि। आपकी सम्पूर्ण कहानियाँ जैनेन्द्र की कहानियाँ शीर्षक से सात भागों में प्रकाशित हुई हैं। जैनेन्द्र ने ‘परख,तपोभूमि, सुनीता,त्यागपत्र,कल्याणी, सुखदा,विवर्त, व्यतीत और जयवर्धन उपन्यास भी लिखें हैं जो साहित्य-जगत् में बहुचर्चित तथा लोकप्रिय हुए हैं। जैनेन्द्र ने अनुवाद और सम्पादन का काम भी किया है। जैनेन्द्र ने अनेक निबन्ध-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।
कथा-शिल्प एवं भाषा-शैली
जैनेन्द्र की कहानी-कला चरित्र की निष्ठा तथा संवेदना के व्यापक धरातल पर विकसित हुई है। जैनेन्द्र की कहानियों में दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण विशेष रूप से उभरा हुआ है। दार्शनिक आधार पर लिखी हुई आपकी कहानियों में आपके गम्भीर चिन्तन एवं बौद्धिक सघनता का समावेश हुआ है। जैनेन्द्र की कहानियों के कथानक मुख्य रूप से संवेदना पर आधारित हैं तथा पाठक के अन्तस्तल को स्पर्श करते हुए गतिशील हुए हैं। जैनेन्द्र की कहानियाँ मनोविश्लेषणात्मक तथा जीवन-दर्शन-परक भी हैं। फलतः उनमें विस्तार की अपेक्षा गहनता अधिक है। जैनेन्द्र की प्रमुख कहानियाँ हैं—जाह्नवी, पाजेब, एक रात, मास्टरजी आदि। जैनेन्द्र के अधिकतर कथानक स्पष्ट तथा सूक्ष्म हैं। उनमें व्यक्ति को केन्द्र में रखकर समाज के जीवन का चित्रण किया गया है। जैनेन्द्र कथा-वस्तु के विकास में सत्य, अहिंसा, प्रेम, करुणा तथा मानवीय आदर्शों की स्थापना को महत्त्व दिया है।
जैनेन्द्र ने चरित्र-चित्रण पर विशेष बल दिया है तथा विविध प्रकार के चरित्रों की सृष्टि की है। मनोविश्लेषण के माध्यम से पात्रों के आन्तरिक द्वन्द्वों तथा मानसिक उलझनों को व्यक्त किया गया है। जैनेन्द्र के पात्र मुख्यतः अन्तर्मुखी हैं। आप विशिष्ट पात्रों को विशिष्ट व्यक्तित्व देने में सफल रहे हैं। दूसरे प्रकार के पात्र वर्ग-प्रतिनिधि हैं जो प्रायः सामान्य कोटि में आते हैं।
जैनेन्द्र की शैली के विविध रूप हैं, जिनमें दृष्टान्त, वार्ता तथा कथा-शैलियाँ मुख्य हैं। नाटकीय एवं स्वगत-भाषण शैलियों का प्रयोग भी अनेक कहानियों में हुआ है। संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी के शब्दों को समेटे आपकी भाषा भावपूर्ण, चित्रात्मक एवं सशक्त है। यथोचित शब्द-रचना तथा भावानुकूल शब्द-चयन आपकी भाषा-शैली की उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं। जैनेन्द्र की कहानियों में संवादों की सीमित योजना हुई है, तथापि उनके कथोपकथन मानव-चरित्र का विश्लेषण करते हुए, पात्रों की चरित्रगत विशेषताओं एवं उनकी मानसिक स्थितियों को उजागर करते हैं।
जैनेन्द्र की कहानियों में निश्चित लक्ष्य है तथा उनमें चिन्तन की गहराई के अतिरिक्त अनुभूति की व्यंजना एवं आदर्श की प्रतिष्ठा का प्रयत्न भी हुआ है। जैनेन्द्र ने व्यक्ति के जीवन के आन्तरिक पक्षों, उसके रहस्यों एवं उसकी उत्कृष्टताओं को दार्शनिक दृष्टिकोण से उभारने का प्रयत्न किया है।
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