सरदार पूर्ण सिंह 188।-1931

सरदार पूर्णसिंह


* जन्म-17 फरवरी, सन् 188। ईo।
* गृत्यु-31 मार्च, सन् 1931 ई०।
* जन्म-स्थान-एबटाबाद (पाकिस्तान)।
* द्विवेदी युग के निबन्धकार।
* कृतियाँ-सच्ची वीरता, आचरण की सभ्यता, मजदूरी और प्रेम, अमेरिका का मस्त योगी बाल्ट ह्विटमैन, कन्यादान,    पवित्रता।.

    द्विवेदी-युग के श्रेष्ठ निबंधकार सरदार पूर्णसिंह का जन्म सीमा प्रान्त (जो अब पाकिस्तान में है) के एबटाबाद जिले के एक गाँव में सन् 1881 ई0 में हुआ था इनकी आरंभिक शिक्षा रावलपिंडी में हुई थी। हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ये लाहौर चले गये लाहौर के एक कालेज से इन्होंने एफo एo की परीक्षा उत्तीर्ण की । इसके बाद एक विशेष छात्रवृत्ति प्राप्त कर सन् 1900 ई० में रसायनशास्त्र के विशेष अध्ययन के लिए ये जापान गये और वहाँ इम्पीरियल यूनिवर्सिटी में अध्ययन करने लगे। जब जापान में होनेवाली 'विश्व धर्म सभा' में माग लेने के लिए स्वामी रामतीर्थ वहाँ पहुँचे तो उन्होंने वहाँ अध्ययन कर रहे भारतीय विद्यार्थियों से भी भेंट की। इसी क्रम में सरदार पूर्णसिंह से स्वामी रामतीर्थ की भेंट हुई। स्वामी रामतीर्थ से प्रभावित होकर इन्होंने वहीं संन्यास ले लिया और स्वामी जी के साथ ही भारत लौट आये। स्वामी जी की मृत्यु के बाद इनके विचारों में परिवर्तन हुआ और इन्होंने विवाह करके गृहस्थ जीवन व्यतीत करना आरम्भ किया। इनको देहरादून के इम्पीरियल फारेस्ट इंस्टीट्यूट में 700 रुपये महीने की एक अच्छी अध्यापक की नौकरी मिल गयी। यहीं से इनके नाम के साथ अध्यापक शब्द जुड़ गया। ये स्वतंत्र प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, इसलिए इस नौकरी को निभा नहीं सके और त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद ये ग्वालियर गये। वहाँ इन्होंने सिखों के दस गुरुओं और स्वामी रामतीर्थ की जीवनियाँ अंग्रेजी में लिखीं । ग्वालियर में भी इनका मन नहीं लगा। तब ये पंजाब के जड़ाँवाला स्थान में जाकर खेती करने लगे। खेती में हानि हुई और ये अर्थ-संकट में पड़कर नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटकने लगे। इनका सम्बन्ध क्रान्तिकारियों से भी था। 'देहली पड्यंत्र' के मुकदमे में मास्टर अमीरचंद के साथ इनको भी पूछताछ के लिए बुलाया गया था किन्तु इन्होंने मास्टर अमीरचंद से अपना किसी प्रकार का सम्बन्ध होना स्वीकार नहीं किया प्रमाण के अभाव में इनको छोड़ दिया गया। वस्तुतः मास्टर अमीरचंद स्वामी रामतीर्थ के परम भक्त और गुरुभाई थे। प्राणों की रक्षा के लिए इन्होंने न्यायालय में झूठा बयान दिया था। इस घटना का इनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा था। भीतर- ही-भीतर ये पश्चाताप की अगन में जलते रहते थे। इस कारण भी ये व्यवस्थित जीवन व्यतीत नहीं कर सके और हिन्दी साहित्य की एक बड़ी प्रतिभा पूरी शक्ति से हिन्दी की सेवा नहीं कर सकी। 31 मार्च, 1931 में इनकी मृत्यु हो गयी।

    सरदार पूर्णसिंह के हिन्दी में कुल छह निबंघ उपलब्ध हैं-
    1. सच्ची वीरता, 2. आचरण की सभ्यता, 3. मजदूरी और प्रेम, 4. अमेरिका का मस्त योगी वॉल्ट हिटमैन, 5. कन्यादान और 6. पवित्रता। इन्हीं निबंधों के बल पर इन्होंने हिन्दी गद्य-साहित्य के क्षेत्र में अपना स्थायी स्थान बना लिया है। इन्होंने निबंध रचना के लिए मुख्य रूप से नैतिक विषयों को ही चुना। 
    सरदार पूर्णसिंह के निबंध विचारात्मक होते हुए भावात्मक कोटि में आते हैं। उनमें भावावेग के साथ ही विचारों के सूत्र भी लक्षित होते हैं जिन्हें प्रयत्नपूर्वक जोड़ा जा सकता है। ये प्रायः मूल विषय से हटकर उससे सम्बन्धित अन्य विषयों की चर्चा करते हुए दूर तक भटक जाते हैं और फिर स्वयं सफाई देते हुए मूल विषय पर लौट आते हैं। उद्धरण-बहुलता और प्रसंग-गर्भत्व इनकी निबंध-शैली की विशेषता है।

    सरदार पूर्णसिंह की भाषा शुद्ध खड़ीबोली है, किन्तु उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ फारसी और
अंग्रेजी के शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं। इनकी निबंध-शैली अनेक दृष्टियों से निजी-शैली है इनके विचार भावुकता की लपेट में लिपटे हुए होते हैं। भावात्मकता, विचारात्मकता, वर्णनात्मकता, सूत्रात्मकता, व्यंग्यात्मकता इनकी शैली की प्रमुख विशेषताएँ हैं। विचारों और भावनाओं के क्षेत्र में ये किसी सम्प्रदाय से बँधकर नहीं चलते। इसी प्रकार शब्द-चयन में भी ये आण्ने स्वच्छन्द स्वभाव को प्रकट करते हैं इनका एक ही धर्म है मानववाद और एक ही भाषा है हृदय की भाषा। सच्चे मानव की खोज और सच्चे हृदय की भाषा की तलाश ही इनके साहित्य का लक्ष्य है।

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