छायावादी काव्य

छायावादी काव्य


‘द्विवेदी युग’ के पश्चात हिन्दी साहित्य में कविता की जो धारा प्रवाहित हुई, वह छायावादी कविता के नाम से प्रसिद्ध हुई। 'छायावाद' की कालावधि सन 1917 से 1936 तक मानी गई है। 1916 ई. के आस-पास हिन्दी में कल्पनापूर्ण, स्वच्छंद और भावुकता की एक लहर उमड़ पड़ी। भाषा, भाव, शैली, छंद, अलंकार इन सब दृष्टियों से पुरानी कविता से इसका कोई मेल नहीं था। आलोचकों ने इसे 'छायावाद' या 'छायावादी कविता' का नाम दिया। ‘द्विवेदी युग’ में हिन्दी कविता कोरी उपदेश मात्र बन गई थी। उसमें समाज सुधार की चर्चा व्यापक रूप से की जाती थी और कुछ आख्यानों का वर्णन किया जाता था। उपदेशात्मकता और नैतिकता की प्रधानता के कारण कविता में नीरसता आ गई। कवि का हृदय उस निरसता से ऊब गया और कविता में सरसता लाने के लिए वह छटपटा उठा। इस युग की हिन्दी कविता में वस्तु निरूपण के स्थान पर अनुभूति निरूपण को प्रधानता प्राप्त हुई थी।

छायावाद का स्वरूप और काव्य परंपरा

हिंदी की स्वच्छन्दतावादी काव्यधारा की विकसित अवस्था को छायावाद नाम से अभिहित किया गया है | इस आधार पर देखा जाय तो श्रीधर पाठक, मुकुटधर पाण्डेय और रामनरेश त्रिपाठी, जिन्हें आचार्य शुक्ल ‘सच्चे स्वच्छन्दतावादी’ कहते थे, प्रथम चरण के कवि है और दूसरे चरण इस काव्य-प्रवृति को अधिक सूक्ष्म और व्यापक रूप देकर प्रौढ़तम उत्कर्ष तक पहुँचाने वाले कवि जयशंकर प्रसाद, निराला, पन्त और महादेवी वर्मा थे, जिन्हें छायावादी कवि माना गया | ‘छायावाद’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम मुकुटधर पाण्डेय ने किया | उन्होंने 1920 में जबलपुर से प्रकाशित पत्रिका “श्रीशारदा” में “हिंदी कविता में छायावाद” नाम से एक लेखमाला प्रकाशित की | उन्होंने छायावाद की आरंभिक विशिष्टताओं का उल्लेख करते हुए लिखा कि “छायावाद एक मायामय सूक्ष्म वस्तु है| इसमें शब्द और अर्थ का सामंजस्य बहुत कम रहता है |” किन्तु आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने यह अनुमान लगा लिया कि छायावाद और रहस्यवाद बंगाल के ब्रह्म-समाजी छायापदों और रवीन्द्रनाथ टैगोर की रह्स्यानुभूतियों का रूपांतरण है और जिसका आधार ईसाई धर्म-प्रचारकों का रहस्य-दर्शन अर्थात् फैंटसमाटा है| कुछ समय के बाद छायावाद के लिए “रोमैंटिसिज्म” शब्द का प्रयोग किया गया | कवि और आलोचकों ने छायावाद और रोमैंटिसिज्म को पर्याय समझना शुरू किया | आचार्य शुक्ल ने छायावाद को एक शैली मात्र घोषित कर दिया | किन्तु रहस्यवाद, छायावाद और स्वच्छन्दतावाद (रोमैंटिसिज्म) में सूक्ष्म अंतर है| लेकिन आचार्य शुक्ल के इस मत को उनके प्रिय कवि सुमित्रानंदन पन्त ने यह कहकर अमान्य कर दिया कि रहस्योन्मुखता छायावाद की एक महत्वपूर्ण विशेषता अवश्य है, उसका केंद्रीय भाव नहीं है | छायावाद वस्तुतः एक विशेष सौन्दर्य दृष्टि का उन्मेष है | रहस्योन्मुखता और प्रकृति प्रेम उसी की अभिव्यक्ति की विविध सरणियाँ है | जहाँ तक छायावाद को एक शैली मात्र मानने की बात है तो प्रतीकात्मकता को छायावाद का अनिवार्य लक्षण पहले ही मान लिया गया है | मूल रूप से यथार्थ को छाया के माध्यम से व्यक्त करने वाले काव्यान्दोलन को छायावाद कहा जाता है | द्विवेदी युगीन बंधन प्रियता और आदर्शवादिता को विरोध करते हुए छायावादी रचनाकारों ने युग के यथार्थ के बाह्य स्वरूप को ना व्यक्त करके उसकी सूक्ष्मता को व्यक्त करने पर अत्यधिक जोर दिया।  छायावादी कविता गहरे अर्थों में कल्पना तत्व, सांस्कृतिक चेतना का विकास, राष्ट्रवादी चेतना का विस्तार, नवजागरण के सूक्ष्म होते स्तर और आधुनिकता बोध की कविता है | छायावादी कवियों ने अपनी व्यक्तिगत जीवन की अभिव्यक्ति कविता के माध्यम से की है। इन्होंने विषय वस्तु की खोज बाह्य जगत से ना करके अपने मन के साथ संवाद को अभिव्यक्त किया है। छायावाद विदेशी पराधीनता और स्वदेशी जीर्ण-शीर्ण रुढियों से मुक्त होने का मुखर स्वर भी है, जिसमें राष्ट्रीय जागरण की चेतना प्रधान है |

सांस्कृतिक चेतना का विकास छायावाद की एक प्रमुख विशेषता के रूप में सामने आती है। कोई भी समाज जब आधुनिकता के संपर्क में आता है तो वह सबसे पहले अपने इतिहास के साथ संवाद स्थापित करता है। साथ ही उन सभी तत्वों को अलगाने का कार्य करता है जो उनकी सांस्कृतिक परंपरा को मजबूत करते हैं। इसक्रम में छायावादियों के पास एक लंबी परंपरा मौजूद है जिसके बरक्स वह तत्कालीन समाज के सामने उनके गौरवशाली इतिहास को ला सकते थे। छायावाद काव्य को एकतरफ गांधीवाद से प्रेरणा प्राप्त हुयी और दूसरी तरफ वह बंगाल के नवजागरण तथा रवीन्द्रनाथ के संपर्क में भी आता है। छायावाद की राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना गांधी की भाववादी विचारधारा तथा रवीन्द्रनाथ का मानवतावाद से प्रेरणा लेकर विकसित हो रही थी।      
छायावादी काव्य परंपरा

छायावादी काव्य धारा के प्रवर्तक कवि जयशंकर प्रसाद है। केवल भाषा और विषय वस्तु ही नहीं, प्रसाद ने नवीन जीवन-दृष्टि की भी सृष्टि की | प्रसाद काव्य की सांस्कृतिक चेतना अत्यधिक प्रभावशाली है साथ ही यह उनके काव्य की प्रमुख विशेषता भी है। प्रसाद काव्य की सांस्कृतिक चेतना पर व्यापक राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना तथा विश्वमंगल की कामना का समावेश देखा जा सकता है। नवजागरण के प्रभाव में भारतीय समाज में जो संवेदना विकसित हो रही थी वह अपने इतिहास और संस्कृति से गहराई से प्रभावित थी। इसके अलावा जो आधुनिक संवेदना विकसित हो रही थी उसमें भी परंपरा और इतिहास को अत्यधिक महत्व दिया गया था। प्रसाद की कविता इसी तरह की सांस्कृतिक चेतना और आधुनिकताबोध को लेकर विकसित हुई थी | इसके अलावा भाषा के विशेष संदर्भ में देखने पर पता चलता है कि प्रसाद की कविता ब्रजभाषा से लेकर खड़ीबोली तक का सफर तय करती है। इतिवृत्तात्मक खड़ी बोली से लेकर रचनात्मक संवेदना संपन्न लाक्षणिक, चित्रमय, ध्वनिमय काव्य भाषा इनके काव्य की प्रमुख विशेषता है।

निराला छायावादी युग के सबसे प्रखर रचनाकार माने जाते हैं | अधिकांश छायावादी रचनाकारों में कल्पना, सामाजिकता और संस्कृति का गहरा मिश्रण दिखाई देता है। निराला इसी परंपरा का निर्वहन अपनी अलग शैली में करते हैं। शुरू से इनकी कविताएं अत्यधिक प्रयोगधर्मी रही हैं। स्वानुभूति की जो संवेदना आजादी के बाद के गद्य साहित्य में दिखाई देती है निराला उसे अपनी कविता के माध्यम से छायावादी युग में अभिव्यक्त कर चुके हैं। सरोज स्मृति उनकी एक ऐसी ही कविता है जिसके माध्यम से उन्होंने अपनी पुत्री के जीवन के संदर्भ में अपने कविता के माध्यम से व्यक्त किया है। इसके अलावा उन्होंने कई ऐसी कविताएं लिखी हैं जिसका संदर्भ उनके स्वयं के जीवन से लिया जा सकता है। इनकी कविता का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष समकालीनता है। लगातार समाज में विकसित विचारधारा के प्रभाव में अपनी पक्षधरता को निर्धारित करती है। इन्होंने रचनाओं को छंद के बंधन से मुक्त किया। इसतरह निराला छायावाद के सबसे अधिक प्रयोगवादी कवि हैं। तुलसीदास कविता के बाद इनकी कविताओं की संवेदना लगातार प्रगतिवाद के साथ जुड़ती जाती है। इसक्रम में कुकुरमुत्ता, बेला, नये पत्ते, तथा अणिमा आदि महत्वपूर्ण है।

महादेवी अपने समय में अकेली महिला लेखिका हैं जो उस दौर में औरतों की संवेदना को छायावादी संवेदना के साथ व्यक्त करती हैं। इनके काव्य में प्रमुख रूप से वैयक्तिक्ता, वेदना और निराशा, वैयक्तिक प्रेम का चित्रण, अनुभूतियों का मार्मिक चित्रण तथा कल्पना का प्राचुर्य दिखाई देता है। इसके अतिरिक्त दुःख की गहन अनुभूति तथा अकेलापन, रहस्यवादी प्रवृत्ति और प्रकृति चित्रण को भी ये प्रमुखता देती हैं। यदि देखा जाए तो छायावादी युग राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक आधार पर अत्यधिक उथल पुथल का युग रहा है। महादेवी की रचनाएं उस युग के यथार्थ से लगातार प्रभावित दिखाई देती हैं लेकिन उनकी प्रवृत्ति प्रायः अंतर्मुखी रही है। इन्होंने अपनी कविताओं में व्यथा वेदना और रहस्य भावना को ही प्रमुखता दी है तथा आध्यात्मिकता का वरण किया है। नीहार, रश्मि, नीरजा, दीपशिखा तथा सांध्यगीत उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं |

छायावादी युग के प्रवर्तकों में सुमित्रानंदन पंत का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। इनकी कविता में ना सिर्फ छायावादी प्रवृत्ति वरन् अपने समय में विकसित विचारधाराओं का वरण दिखाई देता है। उनकी काव्य रचना में प्रारंभ से लेकर अंत तक अनेक परिवर्तन और मोड़ दिखाई देते हैं। यह एक ऐसे कवि हैं जिनकी मान्यताएं, आदर्श और विचार समय के अनुसार बदलती रही हैं। आजीवन वह किसी आदर्श और विचार से बंधकर नहीं रहे। कवि की विचारधारा ने धीरे – धीरे प्रगतिवाद की तरफ अपना रूख किया। यहीं से उनकी कविता के विकास का द्वितीय युग माना जा सकता है। इस युग तक आते आते छायावाद का सौंदर्यवादी कवि मानव मात्र के कल्याण की कल्पना करता है। कवि को यह विश्वास हो चला था कि मानवता का कल्याण पुरातनता के निर्मोह को उतार फेंकने में है|
छायावादी काव्य का वैशिष्ट्य

छायावाद कविता का ऐसा आन्दोलन है जिसका संबंध भाव-जगत से है, ह्रदय की भूमि से है | भावलोक की सता ही अनुभव का विषय है, ह्रदय से जानने, समझने और महसूस करने की वस्तु है | हिंदी साहित्य में आधुनिक कविता का इतिहास देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि पहली बार छायावाद को ही विराट मानवीय वेदना की भूमि पर प्रतिष्ठित होने का श्रेय प्राप्त है | इसकी प्रमुख विशिष्टताएँ इसप्रकार है-

व्यक्ति-स्वातंत्र्य को स्वर

व्यक्ति-स्वातंत्र्य छायावादी काव्य का मूल स्वर है | यह व्यक्ति की मानसिक और सामाजिक स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति है | किन्तु व्यक्ति-स्वातंत्र्य को अभिव्यक्ति प्रदान करते हुए भी विश्व-बोध में उसका विलयन कर देना ही छायावाद की अन्यतम उपलब्धि है | निराला जब यह कहते है कि “मैंने मै शैली अपनाई” तो यहाँ मैं कहकर समूचे युग की पीड़ा को वे अपनी निधि मानकर चलते है | प्रसाद भी “आँसू” में इसीप्रकार वैयक्तिक विरह को “विश्व-वेदना” में परिणत करते हैं | व्यक्तिगत सुख-दु:ख की अपेक्षा अपने से अन्य के सुख-दुख की अनूभूति ने ही नए कवियों के भाव-प्रवण और कल्पनाशील हृदयों को स्वच्छंदतावाद की ओर प्रवृत्त किया।निराला ने “सरोज-स्मृति” तथा “वन-वेला” में अपने जीवन के मार्मिक प्रसंगों का चित्रण करके वैयक्तिकता का आग्रह व्यक्त किया है | यह आकस्मिक नहीं है कि छायावादी कवियों में से अधिकांश ने किसी-न-किसी रूप में आत्मकथात्मक कविताएँ अवश्य लिखीं है |

प्रकृति-सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना

छायावादी कवि का मन प्रकृति चित्रण में खूब रमा है और प्रकृति के सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना छायावादी कविता की एक प्रमुख विशेषता रही है। छायावादी कवियों के लिए प्रकृति देश-प्रेम और व्यक्ति-स्वातंत्र्य की आकांक्षा की पूरक रही है | इन कवियों ने प्रकृति को “सर्व सुंदरी” कहा है | प्रसाद जी ने हिमालयी शिखरों को शोभनतन कहा है | पंत स्वयमेव पर्वत पुत्र हैं | जबकि निराला के यहाँ सागर, सरिता, निर्झर तथा जल-प्रवाह की ध्वनयात्मक व्यंजना बहुत हुई है | ‘बादल राग’, ‘प्रभात के प्रति’ और धारा आदि कविताएँ इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है | छायावादी काव्य में प्रकृति-सौंदर्य के अनेक चित्रण मिलते हैं| प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी आदि छायावाद के सभी प्रमुख कवियों ने प्रकृति का नारी रूप में चित्रण किया और सौंदर्य व प्रेम की अभिव्यक्ति की। जैसे-पंत की कविता -

“बांसों का झुरमुट
संध्या का झुटपुट
हैं चहक रहीं चिड़ियां
टी वी टी टुट् टुट्”

छायावादी कवि के लिए प्रकृति की प्रत्येक छवि विस्मयोत्पादक बन जाती है। वह प्राकृतिक सौंदर्य पर विमुग्ध होकर रहस्यात्मकता की ओर उन्मुख हो जाता है|

रुढियों से मुक्ति का काव्य

छायावादी काव्य रुढियों से विद्रोह का काव्य है | इन कवियों ने सर्वप्रथम पौराणिकता का निषेध किया | निराला ने हर तरह की रूढ़ि पर प्रहार करने में अपने समकालीनों में सबसे आगे थे | वे काव्य में निरंतर नवगति, नवलय, ताल छंद नव, नवल कंठ, नवजलद मंद्र नव के अभिलाषी रहे है | पन्त ने घोषणा की कि “कट गए छंद के बंध, प्रास के रजत पाश” |प्रसाद को भी “पुरातनता का निर्मोक” सह्य नहीं है |

राष्ट्रीय और सांस्कृतिक चेतना

छायावाद का केन्द्रीय मूल्य स्वातंत्र्य ही है | इसी से छायावादी काव्य के जीवन और कविता संबंधी सभी मूल्य निःसृत होते है | छायावादी कवि अपने ऐतिहासिक सन्दर्भ और राष्ट्रीय परिवेश के अनुरूप बहुमुखी स्वातंत्र्य अथवा मुक्ति की आकांक्षा की अभिव्यक्ति था | मुक्ति की कामना से प्रेरित होकर छायावादी कवियों ने ओजस्वी स्वर में जागरण-गीत भी लिखा | प्रसाद की “हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार’ और ‘हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती’ जैसे गीत, निराला की ‘भारत जय विजय करे’ जैसी रचनाएँ इसका प्रमाण हैं | निराला के “बादल-राग” का विप्लवी बादल भी इसी मुक्ति की कामना का उदाहरण है | छायावाद की मुक्ति कामना और राष्ट्रीय चेतना केवल राष्ट्रगीतों तक ही सीमित नहीं है बल्कि अपनी सूक्ष्म और सांकेतिक प्रकृति के अनुरूप अन्य कविताओं में भी अंतर्धारा के रूप में व्याप्त रहती है | निराला के “तुलसीदास” में देश को पराधीनता से मुक्त कराने का संकल्प है और “राम की शक्ति पूजा” के पौराणिक प्रतीक भी देश के उद्धार के लिए नैतिक शक्ति की साधना का सन्देश देते है |      

राष्ट्रीय जागरण की गोद में पलने-पनपने वाला छायावाद साहित्य यदि रहस्यात्मकता और राष्ट्र प्रेम की भावनाओं को साथ-साथ लेकर चला है, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। विदेशी गुलामी से मुक्ति के लिए संघर्ष कर रही भारतीय जनता को देश के अतीत और सांस्कृतिक चेतना से अवगत कराने के लिए जयशंकर प्रसाद ने अपने नाटकों में राष्ट्र का क्रमबद्ध इतिहास प्रस्तुत किया | प्रसाद ने अपने एक गीत-“हिमालय के आँगन में जिसे प्रथम किरणों का दे उपहार” में भारत के हजारों वर्षों का स्वर्णिम इतिहास अंकित कर दिया है | निराला का प्रसिद्ध गीत-“भारत जय विजय करे” और पंत की “भारतमाता ग्रामवासिनी” भी राष्ट्रीय चेतना की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं | प्रसाद जी द्वारा कामायनी में शक्ति के विद्युत्कणों को समेटने और निराला द्वारा ‘राम की शक्ति पूजा’ में शक्ति की मौलिक कल्पना करने का आह्वान देश की जनता को अपने भीतर की शक्ति को पहचानने का आह्वान है |
नारी के प्रति गरिमामयी दृष्टि

छायावादी कवियों में नारी के प्रति भक्तिकालीन कवियों की तरह न तो तिरस्कार भाव है और न रीतिकाव्य जैसा कामुक कदाचार | इन्होने द्विवेदी युगीन परहेजी संस्कारी से ऊपर उठाकर मानवीय सौन्दर्य की अधिष्ठात्री,मानवीय करुणा की विधात्री और जीवन के शुभ संकेतों की निर्मात्री घोषित किया है | प्रसाद के अनुसार नारी श्रद्धा रूप है-

“नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पगतल में,
पीयूष स्रोत सी बहा करो जीवन के सुन्दर समतल में”

छायावादी कवियों की दृष्टि में नारी विलास की सहचरी न होकर उच्चभूमियों तक ले चलने वाली शक्ति है |

स्वच्छंद कल्पनाशीलता

छायावादी कविता का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष कल्पना का नवोन्मेष है | प्रसाद का कल्पना विधान अत्यंत विलक्षण है | कामायनी में श्रद्धा की मुख छवि को प्रसाद ने घटाओं के बीच खिले गुलाबी रंग के बिजली के फूल जैसी प्रतीत होती है | इसीप्रकार हिमालयी प्रकृति को श्वेत कमल कहना और और उसपर प्रतिबिंबित अरुणिमा को “मधुमय पिंग पराग” कहना विलक्षण कल्पना विधान है | इसीप्रकार निराला की बिंबविधायिनी कल्पना उनकी कई कविताओं-“राम की शक्ति पूजा”, “सरोज स्मृति”, और तुलसीदास” में उद्भाषित हुई है | पन्त तो “कोमल कल्पनाओं के राजकुमार” कहे जाते रहे हैं |

काव्यभाषा और काव्य रूप

छायावादी कवियों ने काव्य-भाषा को सर्वाधिक प्राथमिकता दी है | प्रसाद के अनुसार काव्य के सौन्दर्य बोध का मुख्य आधार है-शब्द-विन्यास कौशल | निराला ने काव्य के भावात्मक शब्दों को ध्वनि और शब्द व्यापार कहा है | वे कहते है-“ एक-एक शब्द बंधा ध्वनिमय साकार” | केवल चित्रात्मक भाषा के कारण हिंदी वाङ्मय में छायावादी काव्य को स्वतंत्र काव्य धारा माना जा सकता है। कविता के लिए चित्रात्मक भाषा की अपेक्षा की जाती है और इसी गुण के कारण उसमें बिम्बग्राहिता आती है। छायावादी कवि इस कला में परम विदग्ध हैं। प्रसाद की निम्नांकित पंक्तियों में भाषा की चित्रात्मकता की छटा देखते ही बनती है-

शशि मुख पर घूंघट डाले,अंचल में दीप छिपाए।
जीवन की गोधूलि में, कौतूहल से तुम आए।

छायावादी कवि ने परम्परा-प्राप्त उपमानों से संतुष्ट न होकर नवीन उपमानों की उद्भावना की। इसमें अप्रस्तुत-विधान और अभिव्यंजना-शैली में शतश: नवीन प्रयोग किए। मूर्त में अमूर्त का विधान उसकी कला का विशेष अंग बना।

छायावादी कवियों ने मुक्तक काव्य, गीति काव्य, प्रबंध काव्य, लम्बी कविताएँ और नाट्य काव्य की रचना की| इनमें मुक्तक काव्य सर्वाधिक लोकप्रिय रहा है | प्रबंध काव्यों में ‘कामायनी’, प्रेम-पथिक’, लोकायतन’ और तुलसीदास उल्लेखनीय हैं |

छायावाद की छंद योजना वैविध्यपूर्ण है | निराला ने पहलीबार मुक्त छंद का प्रयोग करके कविता को तुकबंदी से मुक्त किया | इन कवियों ने लोकधुनों में अपने छंदों का बांधा है | प्रसाद ने कामायनी के प्रथम सर्ग में लोक प्रचलित आल्हा छंद का प्रयोग किया है | इन छन्दों में ध्वन्यात्मकता का सफल निर्वाह हुआ है |

हिंदी कविता को छायावाद की देन

हिंदी साहित्य के लंबे इतिहास में छायावाद बीस बर्षों तक चलने वाला आंदोलन था, जो साहित्य के विकास की दृष्टि से यह समय बहुत कम है लेकिन इसका प्रभाव बहुत लंबे समय तक रहा। कल्पनाशीलता के बीच जन्मे इस काव्यांदोलन में व्याप्त जीवन मूल्यों, जीजिविषा तथा जीवटता हिंदी साहित्य को अमूल्य देन है क्योंकि इसीकारण यह आंदोलन बाद में प्रगतिवाद के मार्ग को प्रशस्त करता है | जीवन और समाज के प्रति जिस क्रान्तिकारी प्रवृति का विकास प्रगतिवादी और समकालीन कविता के दौर में हुआ उसका उत्स छायावाद ही है| इसतरह यदि देखा जाए तो छायावाद और प्रगतिवाद एक दूसरे की प्रतिक्रिया में नहीं वरन् एक दूसरे की पूरक बनकर विकसित हुई है| सामाजिक विकास की एक विशेष अवस्था में छायावाद प्रवृत्ति का क्षरण और प्रगतिवाद का विकास आवश्यक था। छायावाद ने आधुनिक काल के बदले हुए परिवेश को देखने की दृष्टि हिंदी काव्य जगत को प्रदान की | वर्तमान समय में जब अस्मिता के प्रश्न अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गये हैं। भाषा, जाति, वर्ग और संप्रदाय में विभाजित समाज का चित्र हमारे सामने उपस्थित हो जाता है। इन सब के प्रकाश में छायावादी सामूहिकता का साहित्य बनकर उभरता है जहाँ भावनाएं, संस्कार और समस्याओं का सामूहीकरण करके उसके समाधान को तलाशने की कोशिश दिखाई देती है। खासतौर पर प्रसाद के काव्य में जिसतरह लोकजीवन की प्रतिष्ठा और एक हारे हुए नायक में जीवन जीने की लालसा का प्रयास दिखाई देता है वह अद्वितीय है। इसलिए कामायनी को कालजयी रचनाओं के अंतर्गत स्थान दिया जाता है। निराला की कविता राम की शक्तिपूजा में भी ऐसी संवेदना का विकास दिखाई देता है। जहाँ राम एक सामान्य मनुष्य की भांति शक्ति की अराधना और मौलिक कल्पना करते दिखाई देते हैं।

वैयक्तिक अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने की क्षमता छायावाद की ही देन है | छायावादी कवि व्यक्तिगत सुख-दु:ख की अपेक्षा अपने से अन्य के सुख-दुख की अनूभूति को महत्व देते थे | हजारी प्रसाद द्विवेदी और शिवदान सिंह चौहान छायावादी वैयक्तिकता को उच्च भूमि पर प्रतिष्ठित किया क्योंकि यह प्रवृति सामाजिक चेतना के विरोध में नहीं, बल्कि सामंती रूढ़ियों के विरोध में खड़ी हुई थी, जिसे आगे के रचनाकारों ने सहर्ष स्वीकार किया | हिंदी कविता में आगे चलकर मुक्त छंद की जिस प्रवृति का विकास हुआ, उसकी शुरुआत छायावाद से ही हुई | निराला ने पहली बार मुक्त छंद का प्रयोग करके कविता को तुकबंदी से मुक्त किया | छायावाद ने नवीन सौन्दर्य चेतना, नवीन कल्पना, नवीन भाषा विधान और नवीन अप्रस्तुत विधान के द्वारा हिंदी कविता को खूब समृद्ध किया |

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि छायावादी काव्य आन्दोलन हिंदी काव्य की एक अन्यतम उपलब्धि है | आधुनिक हिंदी काव्य आन्दोलन में यही एक आन्दोलन है जिसे मौलिक काव्य आन्दोलन कहा जा सकता है | यह आन्दोलन एक ओर भारतीय संस्कृति और औपनिषदिक तत्वों को आधुनिक धरातल पर जागृत करने का सफल प्रयास करता है तो दूसरी ओर आगामी प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नयी कविता आंदोलनों का मार्ग भी प्रशस्त करता है |

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