संत काव्य धारा के कवि और उनकी रचनाएँ
संत काव्य
‘संत काव्य' का सामान्य अर्थ है संतों के द्वारा रचा गया, काव्य । लेकिन जब हिन्दी में ‘संत काव्य' कहा जाता है तो उसका अर्थ होता है निर्गुणोपासक ज्ञानमार्गी कवियों के द्वारा रचा गया काव्य। भारत में संतमत का प्रारम्भ 1267 ई.में "संत नामदेव" के द्वारा किया हुआ माना जाता है।संत कवि
कबीर, नामदेव, रैदास, नानक, धर्मदास, रज्जब, मलूकदास, दादू, सुंदरदास, चरनदास, सहजोबाई आदि ।सुंदरदास को छोड़कर सभी संत कवि कामगार तबके से आते हैं; जैसे—कबीर (जुलाहा), नामदेव (दर्जी), रैदास (चमार), दादू (बुनकर), सेना (नाई), सदना (कसाई) ।
संत काव्य की धार्मिक विशेषताएँ
- निर्गुण ब्रह्म की संकल्पना
- गुरु की महत्ता
- योग व भक्ति का समन्वय
- पंचमकार
- अनुभूति की प्रामाणिकता व शास्त्र ज्ञान की अनावश्यकता
- आडम्बरवाद का विरोध
- संप्रदायवाद का विरोध
संत काव्य की सामाजिक विशेषताएँ
- जातिवाद का विरोध
- समानता के प्रेम पर बल
संत काव्य की शिल्पगत विशेषताएँ
- मुक्तक काव्य-रूप
- मिश्रित भाषा
- उलटबाँसी शैली (संधा/संध्याभाषा–हर प्रसाद शास्त्री)
- पौराणिक संदर्भो व हठयोग से संबंधित मिथकीय प्रयोग
- प्रतीकों का भरपूर प्रयोग ।
संत काव्य की भाषा
- रामचन्द्र शुक्ल ने कबीर की भाषा को ‘सधुक्कड़ी भाषा' की संज्ञा दी है।
- श्यामसुंदर दास ने कई बोलियों के मिश्रण से बनी होने के कारण कबीर की भाषा को ‘पंचमेल खिचड़ी' कहा है।
- बोली के ठेठ शब्दों के प्रयोग के कारण ही हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को ‘वाणी का डिक्टेटर' कहा है।
संत काव्य धारा के कवि और उनकी रचनाएँ
क्रम | कवि(रचनाकर) | काव्य (रचनाएँ) |
---|---|---|
1. | कबीरदास (निर्गुण पंथ के प्रवर्तक) | बीजक (1. रमैनी 2. सबद 3. साखी; संकलन धर्मदास) |
2. | रैदास | बानी |
3. | नानक देव | ग्रंथ साहिब में संकलित (संकलन- गुरु अर्जुन देव) |
4. | सुंदर दास | सुंदर विलाप |
5. | मलूक दास | रत्न खान, ज्ञानबोध |
सूफी काव्य धारा - कवि और उनकी रचनाएँ
सूफी काव्य धारा
सूफी शब्द-'सूफ' से बना है जिसका अर्थ है 'पवित्र'। सूफी लोग सफेद ऊन के बने चोगे पहनते थे। उनका आचरण पवित्र एवं शुद्ध होता था। इस काव्य धारा को प्रेममार्गी/प्रेमाश्रयी/प्रेमाख्यानक/रोमांसीक कथा काव्य आदि नामों से भी जाना जाता है।सूफी काव्य धारा के गुण
- सूफी काव्य में उपलब्ध प्रेम भावना भारतीय प्रेम से कुछ अलग है।
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इन रचनाओं पर फारसी मसनवी शैली का प्रभाव बताया है।
- मसनवी शैली के अन्तर्गत सर्वप्रथम ईशवंदना, हजरत मोहम्मद की स्तूति, तात्कालीन शासक की प्रशंसा तथा गुरू की महिमा का निरूपण है।
- इस प्रकार के प्रेम का चित्रण भारतीय संस्कृति में ऊर्वशी, पुरूवा आख्यान, नल-दमयन्ती आख्यान, ऊषा-अनिरूद्ध, राधा-कृष्ण आदि रूपों में मिलता है।
- सूफियों ने ईश्कमिजाजी (लौकिक प्रेम) के माध्यम से इश्क हकीकी (अलौकिक प्रेम) को प्राप्त करने पर बल दिया।
- भारत में इस मत का आगमन नवीं-दसवीं शताब्दी में हो गया था।
- लेकिन इसके प्रचार-प्रसार का श्रेय 'ख्वाजा मोइनुद्दिन चिश्ती" को है।
- सूफी साधान में ईश्वर की कल्पना पत्नी रूप में तथा साधक की कल्पना पति रूप में की गई है।
- गणपति चन्द्रगुप्त ने सूफी काव्य को 'रोमांटिक कथा काव्य' कहा है।
सूफी काव्य धारा के कवि
इस धारा के प्रतिनिधि कवि 'जायसी' है। इनकी प्रमुख रचना 'पदमावत' है । (1540 इ.) सूफी काव्य धारा के अधिंकाश कवि मुसलमान है लेकिन इनमें धार्मिक कट्टरता का अभाव है। इन कवियों ने सूफी मत के प्रचार-प्रसार के लिए हिन्दू घरों में प्रचलित प्रेम-कहानियों को अपना काव्य विषय बनाया।- हिन्दी के प्रथम सूफी कवि 'मुल्लादाऊद' को माना जाता है।
- आचार्य शुक्ल ने हिन्दी का प्रथम सूफी कवि 'कुतुबन' को माना है।
- रामकुमार वर्मा ने मुल्लादाऊद कर 'चन्दायन' (लोरकहा) से सूफी काव्य की परम्परा की शुरूआत माना है।
- सूफियों में 'राबिया' नाम की एक कवियित्री भी हुई।
- 'अष्टछाप' के कवि नन्ददास ने 'रूपमंज्जरी' नाम से प्रेमकथा की रचना की, जिसकी भाषा ब्रज है।
सूफी काव्य की विषेषताएं
- मुसलमान कवि और मसनवी शैली
- प्रेमगाथाओं का नामकरण नायिकाओं के आधार पर
- अलौकिक प्रेम की व्यंजना
- कथा संगठन एवं कथानक रूढि़यों का काव्य में प्रयोग
- नायक-नायिका चरित्र चित्रण में एक जैसी पद्धति
- लोक पक्ष एवं हिन्दु संस्कृति का चित्रण
- श्रृंगार रस की प्रधानता
- किसी सम्प्रदाय के खण्डन-मण्डन का अभाव
- अवधी भाषा का प्रयोग तथा क्षेत्रीय बोलियाें का भी प्रभाव
- जायसी के गुरू का नाम - सैय्यद अशरफ, शेख मोहिदी
रचनाएं एवं रचनाकार
- मुल्लादाऊद - चन्दायन (लोरकहा) (1372 इ.) यह अवधी भाषा का प्रथम सम्बन्ध काव्य है, कडवक शैली का प्रयोग (पांच अर्द्धालियों के बाद एक दोहा)।
- कुतुबन - मृगावती, आचार्य शुक्ल ने इसे सूफी काव्य परम्परा का प्रथम ग्रन्थ माना है।
- मंझन - मधुमालती, इसमें नायक के एकानिष्ठ प्रेम का चित्रण किया गया है।
- जायसी - पद्मावत 1540 ई., चितौड़ के राजा रत्नसेन एवं सिंहलद्विप की राजकुमारी पद्मावती की कथा का चित्रण, यह एक रूपक काव्य है। इसके पात्र प्रतीक है - चितौड़ - शरीर का, रत्नसेन - मन का, पद्मावती - सात्विक बुद्धि, सिंहलद्विप - हृदय का, हीरामन तोता - गुरू का, राघव चेतन - शैतान का, नागमती - संसार का, अलाउद्दीन - माया रूप आसुरी शक्ति का आदि।
- जायसी की अन्य रचनांए - अखरापट - वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर को लेकर सिद्धान्त निरूपण, आखरी कलम - कयामत का वर्णन, चित्र रेखा, कहरनामा, मसलनामा
- असाइत - हंसावली (राजस्थानी भाषा में) मोतीलाल मेनारिया के अनुसार।
- दामोदर कवि - लखनसेन पद्मावती कथा' (राजस्थानी)
- ईष्वरदास - सत्यवती कथा
- नन्ददास - रूपमंजरी (ब्रजभाषा में)
- उसमान - चित्रावली
- शेखनवी - ज्ञानदीप
- कासीमषाह - हंस जवाहिर
- नुरमोहम्मद - अनुराग बांसुरी, इन्द्रावती, अनुराग बांसुरी में दोहे के स्थान पर बरवै का प्रयोग किया गया है ।
- जान कवि - कथारूप मंजरी
- पुहकर कवि - रसरतन
सूफी काव्य धारा के कवि और उनकी रचनाएँ
क्रम | कवि(रचनाकर) | काव्य (रचनाएँ) |
---|---|---|
1. | असाइत | हंसावली |
2. | मुल्ला दाऊद | चंदायन या लोरकहा |
3. | मंझन | मधुमालती |
4. | कुतबन | मृगावती |
5. | उसमान | चित्रावती |
6. | जायसी | पद्मावत, अखरावट, आखिरी कलाम, कन्हावत |
7. | आलम | माधवानल कामकंदला |
8. | शेख नबी | ज्ञान दीपक |
9. | पुहकर | रस रतन |
10. | दामोदर कवि | लखमसेन पद्मावती कथा |
11. | नंद दास | रूप मंजरी |
12. | ईश्वर दास | सत्यवती कथा |
13. | नूर मुहम्मद | इंद्रावती, अनुराग बाँसुरी |
राम भक्ति काव्य धारा या रामाश्रयी शाखा - कवि और रचनाएँ
राम काव्य धारा या रामाश्रयी शाखा
जिन भक्त कवियों ने विष्णु के अवतार के रूप में राम की उपासना को अपना लक्ष्य बनाया वे ‘रामाश्रयी शाखा' या 'राम काव्य धारा' के कवि कहलाए। कुछ उल्लेखनीय राम भक्त कवि हैं—रामानंद, अग्रदास, ईश्वर दास, तुलसी दास, नाभादास, केशवदास, नरहरिदास आदि ।राम भक्ति काव्य धारा के सबसे बड़े और प्रतिनिधि कवि हैं तुलसी दास । राम भक्त कवियों की संख्या अपेक्षाकृत कम है। कम संख्या होने का सबसे बड़ा कारण है तुलसीदास का बरगदमयी व्यक्तित्व । यह सवर्णवादी काव्य धारा है इसलिए यह उच्चवर्ण में ज्यादा लोकप्रिय हुआ।
जैन साहित्य में 'विमलसूरि' कृत 'पउम चरिउ', सिद्ध साहित्य में स्वयंभू कृत 'पउम चरिउ' तथा पुष्पदंत कृत 'महापुराण' में रामकथा का वर्णन है। बांग्लाभाषा में 'कृतिवासी' ने 'रामायण' लिखी। तुलसी से पूर्व के रामभक्त कवियों में विष्णुदास ईश्वरदास (भरतमिलाप, अंगदपैज) आदि प्रमुख है। वाल्मिकी की रामायण ही रामकथा का मूलस्त्रोत है।
रामभक्ति से सम्बन्धित सम्प्रदाय
- श्री सम्प्रदाय - (रामानुजाचार्य)- इन्हें शेषनाग अथवा लक्ष्मण का अवतार माना जाता है।
- ब्रह्म सम्प्रदाय - (मध्वाचार्य) - इनका सिद्धांत द्वैतवाद था।
रामभक्ति काव्य के प्रमुख कवि
रामानन्द
मूलरूप में रामभक्ति काव्यधारा का प्रारम्भ रामानन्द से माना जाता है। ये रामावत सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे। इनके गुरू का नाम राघवानन्द था। इन्होंने रामभक्ति को जनसाधारण के लिए सुगम बनाया। सगुण और निर्गुण का समन्वय 'रामावत सम्प्रदाय' की उदार दृष्टि का परिणाम है। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इन्हें 'आकाश धर्मगरू' कहा है।रचनाएं - रामार्चन पद्धति, वैष्णवमताब्ज भास्कर, हनुमानजी की आरती (आरती कीजे हनुमान लला की), रामरक्षास्त्रोत।
रामानन्द सम्प्रदाय
रामानन्द सम्प्रदाय की प्रधान पीठ गलताजी जयपुर में 'कृष्णदास पयहारी' ने स्थापित की। इसे 'उद्धार तोताद्री' कहा जाता है। इसी सम्प्रदाय की एक शाखा तपसी शाखा है। गुरूग्रंथ साहिब में इनके दोहपद मिले हैं।अग्रदास
ये कृष्ण पयहारी के षिष्य थे ओर नाभादास के गुरू थे। रामकाव्य परम्परा में रसिक भावना का समावेष इन्होंने ही किया। ये स्वयं को ' अग्रकली' (जानकी की सखी) मानकर काव्य रचना की।प्रमुख रचनाएं - ध्यान मंजरी, अष्टयाम, रामभजन मंजरी, उपासना बावनी, हितोपदेश भाषा
तुलसीदास
जन्म 1532 इ., रामभक्ति धारा के सबसे बड़े एंव प्रतिनिधि कवि रामभक्त कवियों की संख्या अपेक्षाकृत कम होने के कारण तुलसीदास का बरगदमयी व्यक्तित्व है।- 'तुलसीदास का सम्पूर्ण काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है।' -हजारी प्रसाद द्विवेदी।
- नाभादास ने इन्हें 'काली काल का वाल्मिकी' कहा है।
- ग्रिर्यसन ने इन्हें 'लोकनायक' कहा।
- इन्हें जातिय कवि भी कहा जाता है।
- अमृतलाल नागर के उपन्यास 'मानस का हंस' में तुलसी का वर्णन है।
- आचार्य शुक्ल ने तुलसी का जन्म स्थान राजापुर माना है।
- इनकी माता 'हुलसी' तथा पिता का नाम 'आत्माराम' था
- बचपन का नाम रामभोला था
- इनकी पत्नी का नाम 'रत्नावली' इनके गुरू का नाम 'नरहरिदास' है।
- आचार्य शुक्ल ने कहा है, "भारतीय जनता का प्रतिनिधी कवि यदि किसी को कह सकते हैं तो वह तुलसीदास है।"
- तुलसी अकबर के समकालीन थे।
प्रमुख रचनाएं
आचार्य शुक्ल के अनुसार इनकी 12 रचनाएं है -- रामचरितमानस - यह महाकाव्य 1574 ई. में अयोध्या में लिखा गया; इसके अन्दर सात काण्ड है; पहला बालकाण्ड तथा अंतिम सुन्दरकांड है; किष्किन्धा कांड काशी में लिखा गया; इसकी भाषा अवधि व शैली दोहा-चैपाई है; इसमें तत्कालीन समय की वर्णव्यवस्था की हीनता का वर्णन है।
- बरबैरामायण - इसकी रचना तुलसी ने रहीम के आग्रह पर की।
- कृष्णगीतावली - सूरदास जी से मिलने के बाद लिखी। (अनुसरण के रूप में) इसकी भाषा ब्रज है।
- रामाज्ञा प्रश्नावली - पं. गंगाराम के अनुरोध पर लिखी।
- हनुमानबाहुक - (अप्रामाणिक) बाहु पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए लिखी।
- कलिकाल से मुक्ति पाने हेतु रामदरबार में अर्जी के रूप में प्रस्तुत किया, भाषा ब्रज है।
- कवित रामायण (कवितावलि)
- दोहावली
- गीतावली
- रामलल्ला नहछु
- वैराग्य संदीपनी
- पार्वती मंगल - पार्वती के विवाह का वर्णन है,
- जानकी मंगल - राम-सीता के विरह का वर्णन है,
- विनय पत्रिका - तुलसी के राम को जानने के लिए रामचरितमानस को पढ़ें तथा तुलसी को जानने के लिए विनय पत्रिका पढ़ें; विनय पत्रिका में नवधा भक्ति का स्वरूप है; इनकी भक्ति दैन्य या दास्य भाव की है।
- गीतावली - गीतावली की भाषा ब्रज है तथा संस्कृत शब्दों की बहुलता है, कवितावली तथा गीतावली गीतिकाव्य मुक्तक शैली की रचना है।
नाभादास
ये तुलसीदास के समकालीन थे इनका असली नाम नारायण दास था। इनकी प्रमुख रचना 'भक्तमाल' जिसमें 200 कवियों का वर्णन है।केशवदास
केशवदास हालांकि रचना की दृष्टि से रीतिकाल में माने जाते हैं लेकिन काल के अनुसार भक्तिकाल के कवि माने जाते हैं।प्रमुख रचनाएं - कविप्रिया, रसिकप्रिया, रामचन्द्रिका, वीरसिंह चरित्, विज्ञान गीता, रत्नबावनी।
जहांगिरी जसचन्द्रिका
ये हिन्दी कवियों में बहुप्रतिभा सम्पन्न कवि थे। इसलिए ये वीरसिंह और जहांगीर की स्तुति के कारण आदिकालीन 'रामचन्द्रिका' के कारण भक्तिकालीन 'रसिक प्रिया' और 'कवि प्रिया' के कारण रीतिकालीन कवियों में शामिल होते हैं।- रामचन्द्रिका की भाषा बुन्देलखण्डी मिश्रित ब्रज है।
- रामचन्द्रिका को 'छन्दों का अजायबघर' कहा जाता है।
- ये ओरछा नरेष इन्द्रजीत सिंह के दरबारी कवि थे।
- आचार्य शुक्ल ने इन्हें 'कठिन काव्य का प्रेत' कहा है।
राम भक्ति काव्य की विशेषताएँ
- दास्य भाव की भक्ति
- समन्वय का व्यापक प्रयास
- लोक-कल्याण की भावना
- मर्यादा एवं आदर्श की स्थापना
- मुख्य काव्य भाषा-अवधी है
- राम का लोक नायक रूप
- लोक मंगल की सिद्धि
- सामूहिकता पर बल
- समन्वयवाद
- मर्यादावाद
- मानवतावाद
- काव्य-रूप—प्रबंध व मुक्तक दोनों
- काव्य-भाषा-मुख्यतः अवधी
- दार्शनिक प्रतीकों की बहुलता ।
राम भक्ति काव्य और रचनाकर
क्रम | कवि(रचनाकर) | काव्य (रचनाएँ) |
---|---|---|
1. | रामानंद | राम आरती |
2. | अग्र दास | रामाष्टयाम, राम भजन मंजरी |
3. | ईश्वर दास | भरत मिलाप, अंगद पैज |
4. | तुलसीदास | रामचरित मानस (प्र०), गीतावली, कवितावली, विनयपत्रिका, दोहावली, कृष्ण गीतावली, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, बरवै रामायण (प्र०), रामाज्ञा प्रश्नावली, वैराग्य संदीपनी, राम लला नहछू |
5. | नाभादास | भक्त माल |
6. | केशव दास | रामचन्द्रिका (प्रबंध काव्य) |
7. | नरहरि दास | पौरुषेय रामायण |
नाभादास- अग्रदास जी के शिष्य, बड़े भक्त और साधुसेवी थे। संवत् 1657 के लगभग वर्तमान थे और गोस्वामी तुलसीदास जी की मृत्यु के बहुत पीछे तक जीवित रहे। इनकी 3 रचनाए उपलब्ध हैं:– रामाष्टयाम 2. भक्तमाल 3. रामचरित संग्रह।
स्वामी अग्रदास- अग्रदास जी कृष्णदास पयहारी के शिष्य थे जो रामानंद की परंपरा के थे। सन् १५५६ के लगभग वर्तमान थे. इनकी बनाई चार पुस्तकों का पता है. प्रमुख कृतियां है– 1. हितोपदेश उपखाणाँ बावनी ध्यानमंजरी 3. रामध्यानमंजरी 4. राम-अष्ट्याम
कृष्ण भक्ति काव्यधारा या कृष्णाश्रयी शाखा - कवि और रचनाएँ
कृष्ण काव्यधारा या कृष्णाश्रयी शाखा
जिन भक्त कवियों ने विष्णु के अवतार के रूप में कृष्णा की उपासना को अपना लक्ष्य बनाया वे 'कृष्णाश्रयी शाखा' या 'कृष्ण काव्यधारा' के कवि कहलाए। कृष्णकाव्य धारा के प्रतिनिधि कवि सूरदास माने जाते हैं।मध्य युग में कृष्ण भक्ति का प्रचार ब्रज मण्डल में बड़े उत्साह और भावना के साथ हुआ। इस ब्रज मण्डल में कई कृष्ण भक्ति संप्रदाय सक्रिय थे। इनमें बल्लभ, निम्बार्क, राधा वल्लभ, हरिदासी (सखी संप्रदाय) और चैतन्य (गौड़ीय) संप्रदाय विशेष रूप से उल्लेखनीय है ।
इन संप्रदायों से जुड़े ढेर सारे कवि कृष्ण काव्य रच रहे थे। लेकिन जो समर्थ कवि कृष्ण काव्य को एक लोकप्रिय काव्य-आंदोलन के रूप में प्रतिष्ठित किया वे सभी वल्लभ संप्रदाय से जुड़े थे।
पुष्टि मार्ग
बल्लभ संप्रदाय का दार्शनिक सिद्धांत 'शुद्धाद्वैत' तथा साधना मार्ग ‘पुष्टि मार्ग' कहलाता है। पुष्टि मार्ग का आधार ग्रंथ ‘भागवत' (श्रीमद्भागवत) है। पुष्टि मार्ग में बल्लभाचार्य ने 4 कवियों (सूरदास, कुंभनदास, परमानंद दास व कृष्णदास) को दीक्षित किया।उनके मरणोपरांत उनके पुत्र विटठ्लनाथ आचार्य की गद्दी पर बैठे और उन्होंने भी 4 कवियों (छीतस्वामी, गोविंदस्वामी, चतुर्भुजदास व नंददास) को दीक्षित किया। विटठ्लनाथ ने इन दीक्षित कवियों को मिलाकर ‘अष्टछाप' की स्थापना 1565 ई० में की । सूरदास इनमें सर्वप्रमुख हैं और उन्हें ‘अष्टछाप का जहाज' कहा जाता है।
विभिन संप्रदाय और उनसे जुड़े कवि
निम्बार्क संप्रदाय से जुड़े कवि थे—श्री भट्ट, हरि व्यास देव; राधा बल्लभ संप्रदाय से संबद्ध कवि हित हरिवंश थे; हरिदासी संप्रदाय की स्थापना स्वामी हरिदास ने की और वे ही इस संप्रदाय के प्रथम और अंतिम कवि थे। चैतन्य संप्रदाय से संबद्ध कवि गदाधर भट्ट थे। कुछ कृष्ण भक्त कवि संप्रदाय निरपेक्ष भी थे; जैसे-मीरा, रसखान आदि। कृष्ण भक्ति काव्य धारा ऐसी काव्य धारा थी जिसमें सबसे अधिक कवि शामिल हुए।कृष्ण भक्ति काव्य की विशेषताएँ
- कृष्ण का ब्रह्म रूप में चित्रण
- बाल-लीला व वात्सल्य वर्णन
- श्रृंगार चित्रण
- नारी मुक्ति
- सामान्यता पर बल
- आश्रयत्व का विरोध
- लोक संस्कृति पर बल
- लोक संग्रह
- काव्य-रूप -मुक्तक काव्य की प्रधानता
- काव्य-भाषा-ब्रजभाषा
- गेय पद परंपरा
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की राय है, यद्यपि तुलसी के समान सूर का काव्य क्षेत्र इतना व्यापक नहीं कि उसमें जीवन की भिन्न-भिन्न दशाओं का समावेश हो पर जिस परिमित पुण्यभूमि में उनकी वाणी ने संचरण किया उसका कोई कोना अछूता न छूटा। श्रृंगार और वात्सल्य के क्षेत्र में जहाँ तक इनकी दृष्टि पहुँची वहाँ तक और किसी कवि की नहीं। इन दोनों क्षेत्रों में तो इस महाकवि ने मानो औरों के लिए कुछ छोड़ा ही नहीं।
भक्ति आंदोलन में कृष्ण काव्यधारा ही एकमात्र ऐसी धारा है जिसमें नारी मुक्ति का स्वर मिलता है। इनमें सबसे प्रखर स्वर मीरा बाई का है। मीरा अपने समय के सामंती समाज के खिलाफ एक क्रांतिकारी स्वर है।
अन्य विशेषताएँ
- आधुनिक भारतीय भाषाओं (हिन्दी) में सर्वप्रथम 'विद्यापति' ने राधा कृष्ण का चित्रण किया।
- विद्यापति पदावली के पद इतने मधुर और भावपूर्ण हैं कि चैतन्य महाप्रभु उन्हें गाते-गाते भावविभोर होकर मुर्छित हो जाते थे।
- कृष्ण भक्ति काव्य आनन्द और उल्लास का काव्य है। (लोकरंजक)
- कृष्ण काव्य के आधार ग्रन्थ 'भागवत पुराण' और महाभारत माने जाते हैं।
- हिन्दी में कृष्ण काव्य के प्रवर्तन का श्रेय विद्यापति को ही है।
- 'भ्रमर गीत' का मूल स्त्रोत श्रीमतभागवत पुराण के दशम् स्कन्द के 46वें व 47वें अध्याय को माना जाता है।
- बृज भाषा में भ्रमरगीत परम्परा सूरदास से प्रारम्भ हुई।
- विद्यापति ने 'जयदेव' के 'गीतगोविन्द' का अनुसरण किया।
अष्टछाप के कवि
अष्टछाप के कवि (विस्तार से - अष्टछाप के कवि) गोवर्धन में श्रीनाथ मन्दिर में अष्ट भाग विधि से सेवा करते थे। अष्टछाप की स्थापना 1565 ई. में विठ्ठलदास द्वारा की गई।- विद्यापति ने ‘जयदेव’ के ‘गीत-गोविन्द’ का अनुसरण किया।
- विद्यापति-पदावली - नन्ददास अष्टछाप के कवियों में सबसे विद्वान कवि थे।
- 84 वैष्णव की वार्ता - इसमें वल्लभाचार्य के शिष्यों का वर्णन है।
- वैष्णवन की वार्ता में विठ्ठलदास के शिष्यों का भी वर्णन है।
- भ्रमरगीत का मूल स्त्रोत श्रीमद्भागवत पुराण है।
- वल्लभाचार्य कृत अनुभाष्य में पुष्टि मार्ग की व्याख्या है।
- पुष्टिमार्गीय भक्ति को रागानुगा भक्ति कहते हैं।
अष्टछाप की स्थापना विठ्ठलदास के द्वारा गोवर्धन पर्वत पर 1519 ई. में श्रीनाथ मन्दिर की स्थापना पूर्णमल खत्री के द्वारा की गई।
कृष्ण भक्ति सम्बन्धी सम्प्रदाय
वल्लभ सम्प्रदाय
प्रवर्तक वल्लभाचार्य, इनका दार्शनिक सिद्धान्त शुद्धाद्वैत है। इनके अनुसार श्री कृष्ण पूर्ण पुरूषोतम ब्रह्म है।विष्णु सम्प्रदाय को पुनर्गठित कर वल्लभाचार्य ने वल्लभ सम्प्रदाय का रूप दिया। भागवत टीका, सुबोधिनी, अणुभाष्य इनकी प्रमुख रचनाएं है।
निम्बार्क सम्प्रदाय
निम्बकाचार्य ने सम्पादित किया। राधा-कृष्ण की युगल-मूर्ति की पूजा। द्वेताद्वैतवाद या (भेद-अभेदवाद) दार्शनिक सिद्धान्त ।राधावल्लभ सम्प्रदाय
प्रवर्तक हितहरिवंश, इसमें राधा को ही प्रमुख माना गया है और कृष्ण को ईश्वरों का ईश्वर माना गया है।गोडिय सम्प्रदाय
चैतन्य सम्प्रदाय (प्रर्वतक-चैतन्य महाप्रभु) कृष्ण को बृजेष के रूप में माना है।कृष्ण भक्ति कवि और रचनाएँ
क्रम | कवि(रचनाकर) | काव्य (रचनाएँ) |
---|---|---|
1. | सूरदास | सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी, भ्रमरगीत (सूरसागर से संकलित अंश) |
2. | परममानंद दास | परमानंद सागर |
3. | कृष्ण दास | जुगलमान चरित्र |
4. | कुंभन दास | फुटकल पद |
5. | छीत स्वामी | फुटकल पद |
6. | गोविंद स्वामी | फुटकल पद |
7. | चतुर्भुज दास | द्वादशयश, भक्ति प्रताप, हितजू को मंगल |
8. | नंद दास | रास पंचाध्यायी, भंवर गीत (प्रबंध काव्य) |
9. | श्री भट्ट | युगल शतक |
10. | हित हरिवंश | हित चौरासी |
11. | स्वामी हरिदास | हरिदास जी के पद |
12. | ध्रुव दास | भक्त नामावली, रसलावनी |
13. | मीराबाई | नरसी जी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद, राग सोरठ के पद |
14. | रसखान | प्रेम वाटिका, सुजान रसखान, दानलीला |
15. | नरोत्तमदास | सुदामा चरित |
कृष्ण काव्यधारा के प्रमुख कवि
सूरदास- ये कृष्णभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं। सूरदास नेत्रहीन थे। इनका जन्म 1478 में हुआ था तथा मृत्यु 1573 में हुई थी। इनके पद गेय हैं। इनकी रचनाएं 3 पुस्तकों में संकलित हैं। सूर सारावली : इसमें 1103 पद हैं । 2. साहित्य लहरी 3. सूरसागर : इसमें 12 स्कंध हैं और सवा लाख पद थे किंतु अब 45000 पद ही मिलते हैं । इसका आधार श्रीमद भागवत पुराण है ।कुंभनदास- यह अष्टछाप के प्रमुख कवि हैं। जिनका जन्म 1468 में गोवर्धन, मथुरा में हुआ था तथा मृत्यु 1582 में हुई थी। इनके फुटकल पद ही मिलते हैं ।
नंददास- ये 16वी शती के अंतिम चरण के कवि थे। इनका जन्म 1513 में रामपुर हुआ था तथा मृत्यु 1583 में हुई थी। इनकी भाषा ब्रज थी। इनकी 13 रचनाएं प्राप्त हैं। 1. रासपंचाध्यायी 2. सिद्धांत पंचाध्यायी 3. अनेकार्थ मंजरी 4. मानमंजरी 5. रूपमंजरी 6. विरहमंजरी 7. भँवरगीत 8. गोवर्धनलीला 9. श्यामसगाई 10. रुक्मिणीमंगल 11. सुदामाचरित 12. भाषादशम-स्कंध 13. पदावली।
रसखान- इनका असली नाम सैय्यद इब्राहिम था। इनका जन्म हरदोई में 1533 से 1558 के बीच हुआ था। इन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन कृष्णभक्ति को समर्पित कर दिया था। इन्हें प्रेम रस की खान कहा जाता है। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं सुजान रसखान 2. प्रेमवाटिका ।
मीरा- मीराबाई स्वयं ही एक लोकनायिका हैं।इनका जन्म1498 में हुआ था तथा मृत्यु 1547 में। इन्होंने मध्य काल में स्त्रियों की पराधीन बेड़ियों को तोड़ कर स्वतंत्र हो कर कृष्णप्रेम का प्रदर्शन करने का साहस किया। इन्होंने सामाजिक और पारिवारिक दस्तूरों का बहादुरी से मुकाबला किया और कृष्ण को अपना पति मानकर उनकी भक्ति में लीन हो गयीं।
उनके ससुराल पक्ष ने उनकी कृष्ण भक्ति को राजघराने के अनुकूल नहीं माना और समय-समय पर उनपर अत्याचार किये। मीरा स्वयं को कृष्ण की प्रेयसी मानती हैं, तथा अपने सभी पदों में उसी तरह व्यवहार करती हैं। इनके मृत्यु को ले कर कई किवंदतियां प्रसिद्ध हैं। इनके सभी पद गेय हैं। इनकी रचनाएँ मीराबाई पदावली में संग्रहित हैं।
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