नयी कविता (1951 ई०)
- यों तो 'नयी कविता' के प्रारंभ को लेकर विद्वानों में विवाद है, लेकिन 'दूसरे सप्तक' के प्रकाशन वर्ष 1951ई० से 'नयी कविता' का प्रारंभ मानना समीचीन है। इस सप्तक के प्रायः कवियों ने अपने वक्तव्यों में अपनी कविता को नयी कविता की संज्ञा दी है।
- जिस तरह प्रयोगवादी काव्यांदोलन को शुरू करने का श्रेय अज्ञेय की पत्रिका 'प्रतीक' को प्राप्त है उसी तरह नयी कविता आंदोलन को शुरू करने का श्रेय जगदीश प्रसाद गुप्त के संपादकत्व में निकलनेवाली पत्रिका 'नयी कविता' को जाता है।
- 'नयी कविता' भारतीय स्वतंत्रता के बाद लिखी गयी उन कविताओं को कहा जाता है, जिनमें परम्परागत कविता से आगे नये भाव बोधों की अभिव्यक्ति के साथ ही नये मूल्यों और शिल्प विधान का अन्वेषण किया गया।
- अज्ञेय को 'नयी कविता का भारतेन्दु' कहा सकते हैं क्योंकि जिस प्रकार भारतेन्दु ने जो लिखा ही, साथ ही उन्होंने समकालीनों को इस दिशा में प्रेरित किया उसी प्रकार अज्ञेय ने भी स्वयं पृथुल साहित्य सृजन किया तथा औरों को प्रेरित-प्रोत्साहित किया।
- आम तौर पर 'दूसरा सप्तक' और 'तीसरा सप्तक' के कवियों को नयी कविता के कवियों में शामिल किया जाता है। 'दूसरा सप्तक' के कविगण : रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती, नरेश मेहता, शमशेर बहादुर सिंह, भवानी प्रसाद मिश्र, शकुंतला माथुर व हरि नारायण व्यास। 'तीसरा सप्तक' के कविगण : कीर्ति चौधरी, प्रयाग नारायण त्रिपाठी, केदार नाथ सिंह, कुँवर नारायण, विजयदेव नारायण साही, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना व मदन वात्स्यायन। अन्य कवि : श्रीकांत वर्मा, दुष्यंत कुमार, मलयज, सुरेंद्र तिवारी, धूमिल, लक्ष्मीकांत वर्मा, अशोक बाजपेयी, चंद्रकांत देवताले आदि।
- नयी कविता आंदोलन में एक साथ भिन्न-भिन्न वाद/दर्शन से जुड़े रचनाकार शामिल हुए। यदि अज्ञेय आधुनिक भावबोध वादी-अस्तित्ववादी या व्यक्तिवादी हैं तो मुक्तिबोध, केदार नाथ सिंह आदि मार्क्सवादी/समाजवादी; भवानी प्रसाद मिश्र यदि गाँधीवादी हैं तो रघुवर सहाय, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना आदि लोहियावादी-समाजवादी और धर्मवीर भारती की रुचि सिर्फ देहवाद में हैं।
- नयी कविता के रचनाकारों पर दो वाद या विचारधाराओं अस्तित्ववाद व आधुनिकतावाद का प्रभाव विशेष रूप से पड़ा।
- 'अस्तित्ववाद' एक आधुनिक दर्शन है जिसमें यह विश्वास किया जाता है कि मनुष्य के अनुभव महत्वपूर्ण होते हैं और प्रत्येक कार्य के लिए वह खुद उत्तरदायी होता है। वैयक्तिकता, आत्मसम्बद्धता, स्वतंत्रता, अजनबियत, संवेदना, मृत्यु, त्रास, ऊब आदि इसके मुख्य तत्व हैं। 'आधुनिकतावाद' का संबंध पूँजीवाद विकास से है। पूँजीवाद विकास के साथ उभरे नये जीवन-मूल्यों एवं नयी जीवन पद्धति को आधुनिकतावाद की संज्ञा दी जाती है। इतिहास और परम्परा से विच्छेद, गहन स्वात्म चेतना, तटस्थता और अप्रतिबद्धता, व्यक्ति स्वातंत्र्य, अपने-आप में बंद दुनिया आदि इसके मुख्य तत्व हैं।
नयी कविता की विशेषताएँ :
(1) कथ्य की व्यापकता
(2) अनुभूति की प्रमाणिकता
(3) लघुमानववाद, क्षणवाद तथा तनाव व द्वन्द्व
(4) मूल्यों की परीक्षा (वैयक्तिकता का एक मूल्य के रूप में स्थापना, निरर्थकता बोध, विसंगति बोध, पीड़ावाद सामाजिकता)
(5) लोक-सम्पृक्ति
(6) काव्य संरचना (दो तरह की कविताएं : छोटी कविताएं-प्रगीतात्मक, लंबी कविताएं-नाटकीय, क्रिस्टलीय संरचना, छंदमुक्त कविता, फैंटेसी/स्वप्न कथा का भरपूर प्रयोग)
(7) काव्य-भाषा-बातचीत की भाषा, शब्दों पर जोर
(8) नये उपमान, नये प्रतीक, नये बिम्बों का प्रयोग।
- यदि छायावादी कविता का नायक 'महामानव' था, प्रगतिवादी कविता का नायक 'शोषित मानव' तो नयी कविता का नायक है 'लघुमानव' ।
- 1950 ई० का साल ऐतिहासिक दृस्टि से नयी कविता के विकास का प्रायः चरम बिन्दु था। इस बिन्दु से एक रास्ता नयी कविता की रूढ़ियों की ओर जाता था जिसमें बिम्ब आदि विज्ञापित नुस्खों का अंधानुकरण किया जाता या फिर दूसरा रास्ता सच्चे सृजन का था जो बिम्बवादी प्रवृत्ति को तोड़ता। नये कवियों ने दूसरा रास्ता अपनाया। फलतः धीरे-धीरे काव्य सृजन बिम्ब के दायरे से निकलकर सीधे सपाट कथन की ओर अभिमुख हुआ, जिसे अशोक वाजपेयी 'सपाट बयानी' की संज्ञा देते हैं।
प्रसिद्ध पंक्तियाँ :-
"हम तो 'सारा-का सारा' लेंगे जीवन
'कम-से-कम' वाली बात न हमसे कहिए।" -रघुवीर सहाय
"मौन भी अभिव्यंजना है
जितना तुम्हारा सच है, उतना ही कहो
तुम व्याप नहीं सकते
तुममें जो व्यापा है उसे ही निबाहो।" -अज्ञेय
"जी हाँ, हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ।
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ
मैं किसिम -किसिम के
गीत बेचता हूँ। ('गीतफरोश')" -भवानी प्रसाद मिश्र
"हम सब बौने है, मन से, मस्तिष्क से
भावना से, चेतना से भी बुद्धि से, विवेक से भी क्योंकि हम जन हैं
साधारण हैं
हम नहीं विशिष्ट।" -गिरिजा कुमार माथुर
"मैं प्रस्तुत हूँ
यह क्षण भी कहीं न खो जाय
अभिमान नाम का, पद का भी तो होता है।" -कीर्ति चौधरी
"कुछ होगा, कुछ होगा अगर मैं बोलूंगा
न टूटे, न टूटे तिलिस्म सत्ता का मेरे अंदर एक कायर टूटेगा, टूट !" -रघुवीर सहाय
"जो कुछ है, उससे बेहतर चाहिए
पूरी दुनिया साफ करने के लिए एक मेहतर चाहिए
जो मैं हो नहीं सकता।" -मुक्तिबोध
"भागता मैं दम छोड़
घूम गया कई मोड़। ('अंधेरे में')" -मुक्तिबोध
"दुखों के दागों को तमगों सा पहना
('अंधेरे में')" -मुक्तिबोध
कहीं आग लग गयी, कहीं गोली चल गयी।
('अंधेरे में') -मुक्तिबोध
"मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ
लेकिन मुझे फ़ेंक मत
इतिहासों की सामूहिक गति
सहसा झूठी पड़ जाने पर क्या जाने
सच्चाई टूटे हुए पहिये का आश्रय ले।
('टूटा पहिया')" -धर्मवीर भारती
"जिंदगी, दो उंगलियों में दबी
सस्ती सिगरेट के जलते हुए टुकड़े की तरह है
जिसे कुछ लम्हों में पीकर
गली में फ़ेंक दूँगा।" -नरेश मेहता
"मैं यह तुम्हारा अश्वत्थामा हूँ
शेष हूँ अभी तक
जैसे रोगी मुर्दे के मुख में शेष रहता है
गंदा कफ बासी पीप के रूप में
शेष अभी तक मैं ('अंधा युग')" -धर्मवीर भारती
"दुःख सबको मांजता है और
चाहे स्वयं सबको मुक्ति देना वह न जाने, किन्तु जिनको माँजता है
उन्हें यह सीख देता है सबको मुक्त रखे।" -अज्ञेय
"अब अभिव्यक्ति के सारे खतरे
उठाने ही होंगे
तोड़ने होंगे ही मठ और गढ़ सब। ('अंधेरे में') -मुक्तिबोध
"साँप !
तुम सभ्य हुए तो नहीं
नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया।
एक बात पूछूँ (उत्तर दोगे ?)
तब कैसे सीखा डँसना
विषकहाँ पाया ?" -अज्ञेय
"पर सच तो यह है
कि यहाँ या कहीं भी फर्क नहीं पड़ता।
तुमने जहाँ लिखा है 'प्यार'
वहाँ लिख दो 'सड़क'
फर्क नहीं पड़ता।
मेरे युग का मुहावरा है :
'फर्क नहीं पड़ता' ।" -केदार नाथ सिंह
"मैं मरूँगा सुखी
मैंने जीवन की धज्जियाँ उड़ाई है।" -अज्ञेय
छायावादोत्तर युगीनप्रसिद्ध पंक्तियाँ (विविध) :-
"श्वानो को मिलता दूध वस्त्र
भूखे बालक अकुलाते हैं" -दिनकर
"लेकिन होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंहसान खाली करो कि जनता आती है।" -दिनकर
"कवि कुछ ऐसी तान सुनाओं, जिससे उथल-पुथल मच जाए
एक हिलोर इधर से आये, एक हिलोर उधर से आए।" -बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
"एक आदमी रोटी बेलता है एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है, जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ .... 'यह तीसरा आदमी कौन है ?'
मेरे देश की संसद मौन है। (रोटी और संसद)" -धूमिल
"क्या आजादी सिर्फ तीन थके हुए रंगों का नाम है
जिन्हें एक पहिया ढोता है
या इसका कोई खास मतलब होता है ?
(बीस साल बाद- 'संसद से सड़क तक')" -धूमिल
"बाबूजी ! सच कहूँ- मेरी निगाह में
न कोई छोटा है
न कोई बड़ा है
मेरे लिए, हर आदमी एक जोड़ी जूता है
जो मेरे सामने
मरम्मत के लिए खड़ा है
(मोचीराम- 'संसद से सड़क तक')" -धूमिल
"मेरे देश का समाजवाद
मालगोदाम में लटकती हुई
उन बाल्टियों की तरह है जिस पर 'आग' लिखा है
और उनमें बालू और पानी भरा है।
(पटकथा- 'संसद से सड़क तक')" -धूमिल
"अपने यहाँ संसद
तेल की वह घानी है
जिसमें आधा तेल है
और आधा पानी है
(पटकथा- 'संसद से सड़क तक')" -धूमिल
"अपना क्या है इस जीवन में
सब तो लिया उधार
सारा लोहा उन लोगों का
अपनी केवल धार ('अपनी केवल धार')" -अरुण कमल
छायावादोत्तर युगीन रचना एवं रचनाकार:-
- स्वयंभू - पउम चरिउ, रिट्ठणेमि चरिउ (अरिष्टनेमि चरित)
- रामधारी सिंह 'दिनकर' - हुंकार, रेणुका, द्वंद्वगीत, कुरुक्षेत्र, इतिहास के आँसू, रश्मिरथी, धूप और धुआँ, दिल्ली, रसवंती, उर्वशी
- बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' - कुंकुम, उर्मिला, अपलक, रश्मिरेखा, क्वासि, हम विषपायी जनम के
- हरिवंशराय 'बच्चन' - मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, सूत की माला, निशा-निमंत्रण, एकांत संगीत, सतरंगिनी, मिलन-यामिनी, आरती और अंगारे, आकुल अंतर
- सुमित्रा नंदन पंत - शिल्पी, अतिमा, कला और बूढा चाँद, लोकायतन, सत्यकाम जानकी वल्लभ शास्त्री - मेघगीत, अवंतिका
- नरेंद्र शर्मा - प्रभातफेरी, प्रवासी के गीत, पलाश वन, मिट्टी और फूल, कदलीवन
- रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' - मधूलिका, अपराजिता, किरणबेला, लाल चूनर
- आरसी प्रसाद सिंह - कलापी, पांचजन्य
- केदारनाथ सिंह - नींद के बादल, फूल नहीं रंग बोलते हैं, अपूर्व, युग की गंगा
- नागार्जुन - प्यासी पथराई आँखें, युगधारा, भस्मांकुर, सतरंगे पंखों वाली; ऐसे भी हम क्या, ऐसे भी तुम क्या; खिचड़ी विप्लव देखा हमने, हजार-हजार बाँहों वाली, पुरानी जूतियों का कोरस, हरिजन गाथा (क०)
- रांगेय राघव - राह का दीपक, अजेय खँडहर, पिघलते पत्थर, मेधावी, पांचाली
- गिरिजाकुमार माथुर - मंजीर, कल्पांतर, शिलापंख चमकीले, नाश और निर्माण, मशीन का पुर्जा, धूप के धान, मैं वक्त के हूँ सामने, छाया मत छूना मन
- गजानन माधव 'मुक्तिबोध - भूरी-भूरी खाक धूल, चाँद का मुँह टेढ़ा है
- भवानीप्रसाद मिश्र - सतपुड़ा के जंगल, गीतफरोश, खुशबू के शिलालेख, बुनी हुई रस्सी, कालजयी, गाँधी पंचशती, कमल के फूल, इदं न मम, चकित है दुःख, वाणी की दीनता
- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन - 'अज्ञेय' भग्नदूत, चिंता, इत्यलम, हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, इंद्रधनुष रौंदे हुए ये, अरी ओ करुणा प्रभामय, आँगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार, क्योंकि मैं उसे जनता हूँ, सागर-मुद्रा, पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ, महावृक्ष के नीचे, नदी की बाँक पर छाया, प्रिजन डेज एंड अदर पोएम्स (अंग्रेजी में), असाध्य वीणा, रूपाम्बरा
- धर्मवीर भारती - अंधायुग, कनुप्रिया, ठंडा लोहा, सात गीत वर्ष
- शमशेर बहादुर सिंह - अमन का राग, चुका भी नहीं हूँ मैं, इतने पास अपने
- कुँवर नारायण - परिवेश, हम तुम, चक्रव्यूह, आत्मजयी, आमने-सामने
- नरेश मेहता - संशय की एक रात, वनपाखी सुनो, मेरा समर्पित एकांत, बोलने दो चीड़ को
- त्रिलोचन - मिट्टी की बारात, धरती, गुलाब और बुलबुल, दिगंत, ताप के ताये हुए दिन, सात शब्द, उस जनपद का कवि हूँ
- भारत भूषण अग्रवाल - कागज के फूल, जागते रहो, मुक्तिमार्ग, ओ अप्रस्तुत मन, उतना वह सूरज है
- दुष्यंत कुमार - साये में धूप, सूर्य का स्वागत, एक कंठ विषपायी, आवाज के घंटे
- प्रभाकर माचवे - जहाँ शब्द हैं, तेल की पकौड़ियाँ, स्वप्नभंग, अनुक्षण, मेपल
- रघुवीर सहाय - सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, लोग भूल गए हैं, मेरा प्रतिनिधि, हँसो-हँसो जल्दी हँसो
- शंभूनाथ सिंह - मन्वंतर, खण्डित सेतु
- शिवमंगल सिंह - सुमन' हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय-सृजन, विश्वास बढ़ता ही गया
- शकुंतला माथुर - अभी और कुछ इनका, चाँदनी और चूनर, दोपहरी, सुनसान गाड़ी
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना - खूँटियों पर टँगे लोग, कुआनो नदी, बाँस के पुल, काठ की घंटियाँ, एक सूनी नाव, गर्म हवाएँ, जंगल का दर्द
- विजयदेव नारायण साही - मछलीघर, संवाद तुम से साखी
- जगदीश गुप्त - नाव के पाँव, शब्दशः, हिमबिद्ध, युग्म
- हरिनारायण व्यास - मृग और तृष्णा, एक नशीला चाँद, उठे बादल झुके बादल, त्रिकोण पर सूर्योदय
- श्रीकांत वर्मा - मायदर्पण, मगध, शब्दों की शताब्दी, दीनारंभ
- राजकमल चौधरी - कंकावती, मुक्तिप्रसंग
- अशोक वाजपेयी - एक पतंग अनंत में, शहर अब भी संभावना है
- बालस्वरूप राही - जो नितांत मेरी है
- 'धूमिल' - संसद से सड़क तक, कल सुनना मुझे, सुदामा पाण्डे का प्रजातंत्र
- अजित कुमार - अंकित होने दो, अकेले कंठ की पुकार
- रामदरश मिश्र - पक गई है धूप, बैरंग बेनाम चिट्ठियाँ
- डॉ० विनय - एक पुरुष और, कई अंतराल, दूसरा राग
- जगदीश चतुर्वेदी - इतिहास हंता
- प्रमोद कौंसवाल -अपनी तरह का आदमी
- संजीव मिश्र - कुछ शब्द जैसे मेज
- 'निराला' - कुकुरमुत्ता, गर्म पकौड़ी, प्रेम-संगीत, रानी और कानी खजोहरा, मास्को डायलाग्स, स्फटिक शिला, नये पत्ते, गीत गुंज, सांध्य काकली (प्रकाशन मरणोपरांत- 1969 ई०)
- उदयप्रकाश -सुनो कारीगर, क से कबूतर
प्रबंधात्मक काव्यकृतियाँ:-
- देवराज -आत्महत्याएँ, इला और अमिताभ
- नरेश मेहता - प्रवाद पर्व, महाप्रस्थान, शबरी
- भवानीप्रसाद मिश्र -कालजयी
- भारतभूषण अग्रवाल - अग्निलीक
- डॉ० विनय -पुनर्वास का दण्ड, एक मृत्यु प्रश्न
- जगदीश चतुर्वेदी -- सूर्यपुत्र
- रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' - अपराधिता
- शैलेश जैदी - अब किसे बनवास दोगे
सप्तक के कवि:-
- तार सप्तक' (1943 ई०) अज्ञेय, मुक्तिबोध, गिरिजाकुमार माथुर, प्रभाकर माचवे, भारत भूषण अग्रवाल, नेमिचंद्र जैन, रामविलास शर्मा
- दूसरा सप्तक (1951 ई०) रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती, नरेश मेहता, शमशेर बहादुर सिंह, भवानी प्रसाद मिश्र, शकुंतला माथुर, हरिनारायण व्यास
- तीसरा सप्तक (1959 ई०) कीर्ति चौधरी, प्रयाग नारायण त्रिपाठी, केदारनाथ सिंह, कुँवरनारायण, विजयदेव नारायण साही, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, मदन वात्स्यायन
- चौथा सप्तक (1979 ई०) अवधेश कुमार, राजकुमार कुम्भज, स्वदेश भारती, नंद किशोर आचार्य, सुमन राजे, श्रीराम वर्मा व राजेंद्र किशोर।
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