हिंदी उपन्यास : उद्भव एवं विकास
उपन्यास हिंदी गद्य की एक आधुनिक विधा है । इस विधा का हिंदी में प्रादुर्भाव अंग्रेज़ी साहित्य के प्रभाव स्वरूप हुआ । लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि इससे पहले भारत में उपन्यास जैसी विधा थी ही नहीं । संस्कृत , पालि, प्राकृत , अपभ्रंश आदि में अनेक नीति कथाएँ तथा आख्यान मिलते हैं जिनमें उपन्यास विधा के अनेक तत्त्व मिलते हैं । लेकिन हम उनको उपन्यास नहीं कह सकते । सच्चाई तो यह है कि इस विधा का उद्भव और विकास पहले यूरोप में हुआ । बाद में बांग्ला के माध्यम से यह विधा हिंदी साहित्य में आयी ।
यह भी एक विचारणीय प्रश्न है कि हिंदी का पहला उपन्यास किसे स्वीकार किया जाए । इस संदर्भ में विद्वान अनेक औपन्यासिक कृतियों पर अपने विचार प्रस्तुत करते हैं । लाला श्रीनिवास दास का ‘परीक्षा गुरु ( 1882)
’ इंशा अल्ला खां द्वारा रचित ‘रानी केतकी की कहानी’ तथा श्रद्धा राम फ़िल्लौरी कृत ‘भाग्यवती’ आदि कुछ ऐसी रचनाएँ हैं जिन्हें हिंदी का प्रथम उपन्यास माना जाता है । आज अधिकांश विद्वान लाला श्री निवास दास कृत ‘परीक्षा गुरु’ को हिंदी का प्रथम उपन्यास स्वीकार करते हैं ।
हिंदी-उपन्यास के विकास-क्रम को समझने के लिए इसे तीन भागों में बाँटा जा सकता है :
1. प्रेमचंद पूर्व युग
2. प्रेमचंद युग
3. प्रेमचन्दोत्तर युग
1. प्रेमचंद पूर्व युग:-
भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने हिंदी की विभिन्न विधाओं में महत्त्वपूर्व योगदान दिया परंतु उपन्यास के विकास में उनका योगदान अधिक नहीं है । उन्होंने कुछ उपन्यासों का अनुवाद अवश्य किया परंतु किसी मौलिक उपन्यास की रचना नहीं की । उन्होंने एक उपन्यास लिखना आरम्भ किया था परंतु वह पूर्ण नहीं हो पाया ।
अधिकांश विद्वान हिंदी का प्रथम मौलिक उपन्यास श्री निवास दास द्वारा रचित ‘परीक्षा गुरु’
को मानते हैं । यह एक उपदेशात्मक उपन्यास है । प्रेमचंद-पूर्व के उपन्यासों में मुख्यतः सामाजिक ,
ऐतिहासिक व पौराणिक उपन्यास मिलते हैं । कुछ उपन्यासकारों ने तिलिस्मी व जासूसी उपन्यास लिखे । इस काल के उपन्यासकारों में देवकीनंदन खत्री , गोपालराम गहमरी और किशोरीलाल गोस्वामी का नाम उल्लेखनीय है । देवकीनंदन खत्री ने चंद्रकांता व चंद्रकांता संतती जैसे तिलिस्मी और ऐयारी उपन्यास लिखे । ये उपन्यास इतने अधिक लोकप्रिय हुए कि इन्हें पढ़ने के लिए लाखों लोगों ने हिंदी सिखी । गोपालराम गहमरी ने पाँच दर्जन से अधिक जासूसी उपन्यास लिखे । किशोरीलाल गोस्वामी ने तिलिस्मी उपन्यासों का ढेर सा लगा दिया । बालकृष्ण भट्ट ने ‘नूतन ब्रह्मचारी’, ‘सौ अजान ,
एक सुजान’ उपन्यास लिखे । अयोध्या सिंह उपाध्याय भी एक लोकप्रिय उपन्यासकार हुए । उन्होंने ‘ठेठ हिंदी का ठाठ’ तथा ‘अधखिला फूल’ उपन्यासों की रचना की ।
2. प्रेमचंद युग :-
प्रेमचंद (1880-1936 ) ‘उपन्यास सम्राट’ कहलाते हैं | उन्हीं के उपन्यास-क्षेत्र में पदार्पण से एक नए युग का आरंभ हुआ | वस्तुतः वे हिंदी के प्रथम मौलिक उपन्यासकार थे | उन्होंने उपन्यास विधा को नई पहचान दी | उनके उपन्यासों में निम्न वर्ग, मध्यमवर्ग, भारतीय किसान व समस्त शोषित वर्ग की विभिन्न समस्याओं का चित्रण मिलता है |
सन 1918 में प्रेमचंद का उपन्यास ‘सेवासदन’ प्रकाशित हुआ | इसके साथ ही उपन्यासों की स्वस्थ परंपरा चल निकली |
प्रेमचंद युग में सामाजिक,
ऐतिहासिक तथा मनोवैज्ञानिक तीन प्रकार के उपन्यास लिखे गए | प्रेमचंद के अधिकांश उपन्यास सामाजिक हैं | सेवासदन,
निर्मला, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कर्मभूमि,
गबन, कायाकल्प, गोदान आदि उनके प्रमुख उपन्यास हैं | उनके उपन्यासों में तत्कालीन समाज की यथार्थ झांकी मिलती है | उस समय के समाज में जितनी भी बुराइयां थी उनका वर्णन प्रेमचंद के उपन्यासों में मिलता है | गोदान तो प्रेमचंद की ही नहीं वरन हिंदी साहित्य की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है | प्रेमचंद युग के अन्य प्रमुख उपन्यासकार हैं-जयशंकर प्रसाद, निराला,
विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक, भगवतीचरण वर्मा, वृंदावन लाल वर्मा आदि |
जयशंकर प्रसाद ने ऐतिहासिक उपन्यास लिखे | उनके उपन्यास अधिक लोकप्रिय नहीं हुए | उनके उपन्यास हैं- कंकाल,
तितली तथा इरावती |
उनका उपन्यास ‘इरावती’ अधूरा रह गया था | निराला जी ने भी तीन उपन्यास लिखे अप्सरा, अलका तथा निरुपमा लेकिन उन्हें उपन्यास विधा में उतनी सफलता नहीं मिली जितनी काव्य के क्षेत्र में | विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक के प्रमुख उपन्यास हैं- मां तथा भिखारिणी |
भगवतीचरण वर्मा का प्रसिद्ध उपन्यास ‘चित्रलेखा’
है |
वृंदावन लाल वर्मा ने ऐतिहासिक उपन्यासों की रचना की | उनके प्रमुख उपन्यास हैं-गढ़कुंडार, विराटा की पद्मिनी,
रानी लक्ष्मीबाई आदि |
प्रेमचंदोत्तर युग में उपन्यास के क्षेत्र में अनेक नवीन प्रवृतियां दिखाई देती हैं | कला की दृष्टि से यह युग निश्चित ही प्रेमचंद युग से श्रेष्ठ है लेकिन भावों की दृष्टि से प्रेमचंद-साहित्य से उच्च नहीं है | इस काल के उपन्यासों को निम्नलिखित प्रकार से विभाजित किया जा सकता है :
सामाजिक उपन्यास :सामाजिक उपन्यास प्रेमचंद युग में भी बड़ी संख्या में लिखे गए थे | प्रेमचंदोत्तर युग में सामाजिक उपन्यासों की परंपरा और सुदृढ़ हुई | इस युग के सामाजिक उपन्यासकार थे-भगवती चरण वर्मा, अमृतलाल नागर,
यशपाल, मोहन राकेश,
राजेंद्र यादव, कमलेश्वर, भीष्म साहनी, मन्नू भंडारी, कृष्णा सोबती आदि |
‘टेढ़े-मेढ़े रास्ते व ‘भूले बिसरे चित्र’
भगवतीचरण वर्मा के प्रसिद्ध उपन्यास हैं | ‘अमृत और विष’ व ‘नाच्यो बहुत गोपाल’ अमृतलाल नागर के उपन्यास हैं |
‘झूठा सच यशपाल का प्रसिद्ध सामाजिक उपन्यास है |
‘अंधेरे बंद कमरे’ व ‘अंतराल’
मोहन राकेश के उपन्यास है |
‘सारा आकाश’
उपन्यास
की रचना राजेंद्र यादव ने की |
कमलेश्वर का प्रसिद्ध सामाजिक उपन्यास ‘काली आंधी’
है |
मन्नू भंडारी ने ‘महाभोज’,
‘आपका बंटी’ आदि उपन्यासों की रचना की |
कृष्णा सोबती का प्रमुख उपन्यास ‘जिंदगीनामा’
है |
साम्यवादी उपन्यास :यशपाल के उपन्यास साम्यवादी विचारधारा के उपन्यास हैं | उनके द्वारा रचित उपन्यास ‘दादा कामरेड’, ‘पार्टी कामरेड’ साम्यवादी विचारधारा के पोषक उपन्यास हैं |
राजेंद्र यादव का उपन्यास ‘सारा आकाश’
भी साम्यवादी उपन्यास की श्रेणी में आता है |
नागार्जुन,
डॉ रांगेय राघव व अमृतराय भी साम्यवादी उपन्यासकार हैं | इन उपन्यासों में समाज के खोखलेपन को यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत किया गया है | ये उपन्यास कार्ल मार्क्स की विचारधारा से प्रेरित होकर लिखे गए |
ऐतिहासिक उपन्यास:प्रेमचंदोत्तर युग में ऐतिहासिक उपन्यास भी लिखे गए लेकिन इनकी संख्या अपेक्षाकृत कम है | ऐतिहासिक उपन्यासकारों में वृंदावनलाल वर्मा, निराला व हजारी प्रसाद द्विवेदी का नाम उल्लेखनीय है |
वृंदावन लाल वर्मा के प्रमुख ऐतिहासिक उपन्यास हैं-गढ़कुंडार, विराटा की पद्मिनी व रानी लक्ष्मीबाई |
हजारी प्रसाद द्विवेदी का उपन्यास ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’
भी प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यास है | यशपाल साम्यवादी उपन्यासकार हैं परन्तु ‘दिव्या’ व ‘अमिता’ उनके ऐतिहासिक उपन्यास हैं |
मनोवैज्ञानिक उपन्यास :जैनेन्द्र कुमार ने मनोवैज्ञानिक उपन्यासों की रचना की | उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं – सुनीता , कल्याणी,परख, सुखदा, विवर्त आदि | जैनेन्द्र के बाद अज्ञेय ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया | अज्ञेय ने ‘शेखर:एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’ और ‘अपने-अपने अजनबी’ उपन्यास लिखे | इलाचंद्र जोशी ने मनोविश्लेषण पर बल दिया | उन्होंने ‘सन्यासी’, ‘निर्वासित’ और ‘जहाज का पंछी’ जैसे उपन्यासों की रचना की |
आंचलिक उपन्यास : आंचलिक उपन्यास में किसी क्षेत्र विशेष की संस्कृति का चित्रण किया जाता है | इस दृष्टि से फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास ‘मैला आंचल’ विशेष उल्लेखनीय है | ‘मैला आंचल’ को हिंदी-उपन्यास साहित्य का सर्वश्रेष्ठ आंचलिक उपन्यास कहा जा सकता है |
शिवपूजन सहाय का ‘देहाती दुनिया’
भी प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यास है |
‘बाबा बटेसरनाथ’
नागार्जुन का प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यास है | डॉo
रांगेय राघव का ‘कब तक पुकारूं’, शैलेश मटियानी का ‘होल्दार’ तथा राही मासूम रजा का ‘आधा गांव’ भी आंचलिक उपन्यास हैं | रामदरश मिश्र का प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यास ‘पानी के प्राचीर’ है |
प्रयोगशील उपन्यास : उपन्यास के क्षेत्र में कुछ अनूठे प्रयोग भी किए गए हैं ; जैसे धर्मवीर भारती ने अपने उपन्यास ‘सूरज का सातवा घोडा’ में अलग-अलग व्यक्तियों की अलग-अलग कहानियों को एक सूत्र में पिरोने का प्रयास किया है |
गिरधर गोपाल ने ‘चांदनी के खंडहर’ में केवल 24 घंटों की कथा को अपने उपन्यास का विषय बनाया है | ‘ग्यारह सपनों का देश’ एक ऐसा उपन्यास है जो अनेक लेखकों द्वारा लिखा गया |
ठीक ऐसे ही ‘एक इंच मुस्कान ’ उपन्यास राजेंद्र यादव व मन्नू भंडारी के द्वारा मिलकर लिखा गया |
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के उपन्यास ‘सोया हुआ जल’ में एक सराय में ठहरे हुए यात्रियों की एक रात की जिंदगी का वर्णन है |
आधुनिक युग बोध के उपन्यास:आज का उपन्यास आधुनिक युगबोध का उपन्यास है | यह उपन्यास औद्योगीकरण, शहरीकरण, आधुनिकता,
बौद्धिकता व पश्चिमी विचारधारा से प्रभावित है |
मोहन राकेश, राजेंद्र यादव,
कमलेश्वर, मन्नू भंडारी, कृष्णा सोबती, नरेश मेहता,
भीष्म साहनी आदि उपन्यासकारों के उपन्यास में यह युगबोध सरलता से देखा जा सकता है | उदाहरण के लिए राजकमल चौधरी का उपन्यास ‘मरी हुई मछली’ समलैंगिक यौन सुख में लिप्त महिलाओं की कहानी है | श्रीलाल शुक्ल का ‘राग दरबारी’ उपन्यास आधुनिक जीवन पर सुंदर व्यंग्य है |
निष्कर्षत:कहा जा सकता है कि अल्पकाल में ही हिंदी-उपन्यास विधा ने पर्याप्त उन्नति की है | वर्तमान समय में हिंदी उपन्यास के कथ्य व शिल्प में अत्यधिक परिवर्तन हुआ है जो समय की मांग के अनुरूप उचित भी है |
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